Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९२
करी; ते वखते श्रीमतीना ९८ पुत्रोए पण तेनी साथे ज दीक्षा लीधी.
आ तरफ पुंडरीकिणीनगरीमां श्रीमतीना पिता वज्रदन्त चक्रवर्ती पण क्रमळमां
मृत भ्रमरने देखीने संसारथी विरकत थया. अने अमिततेज वगेरे पुत्रने राज्य
सोंपवा मांडयुं, परंतु ते पुत्रो पण वैराग्य पाम्या होवाथी कोईए राज्यनो स्वीकार न
कर्यो; आथी छेवटे पुंडरीक नामना नानी उमरना पौत्रने राज्यभार सोंपीने, वज्रदन्त
चक्रवर्तीए साठ हजार राणीओ, वीसहजार राजाओ तथा एक हजार पुत्रो सहित दीक्षा
धारण करी, ते वखते श्रीमतीनी सखी पंडिताए पण आर्यिंकाना व्रतरूप दीक्षा धारण
करी.
अहीं राजमाता लक्ष्मीमतीने चिंता थई के पुंडरीक तो हजी नानो बाळक छे ते
आवडा मोटा राज्यनो भार शी रीते संभाळी शकशे? तेथी तेणे उत्पलखेटकनगर
संदेशो मोकलीने राजा वज्रजंघने सहाय माटे तेडाव्यो. संदेश मळतां ज राजा वज्रजंघ
पुंडरीकिणीनगरी जवां माटे तैयार थयो. (१) मतिवरमंत्री, (२) आनंदपुरोहित (३)
धनमित्र शेठ अने (४) अकंपन सेनापति–ए चारेए पण वज्रजंघराजानी साथे ज
प्रस्थान कर्युं. राणीश्रीमती वगेरे पण साथे ज हता.
चालतां चालतां आखी सेना शष्प नामना सरोवरने किनारे आवी पहोंची. ने
त्यां पडाव नाख्यो. भविष्यमां जेओ तीर्थंकर अने गणधर थवाना छे एवा
वज्रजंघ अने श्रीमतीनो मुकाम थवाथी आखुं वन पण जाणे के प्रफुल्लित थयुं होय
तेम शोभी ऊठयुं.
स्नानादि बाद सौए भोजननी तैयारी करी. एवामां एक
आनंदकारी घटना बनी.....






‘शुं बन्युं? ’ ते माटे जाणवा आत्मधर्मनो आवतो अंक जुओ.