Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : जेठ : २४९२
सुप्रसिद्ध रत्नमय जिनबिंबो पण आ मंदिरमां बिराजमान छे. आ रीते जिनदेव
अने जिनवाणी बंने ज्यां बिराजी रह्या छे एवा आ मूडबिद्रि तीर्थंधामने
नमस्कार हो. ए पावन श्रुतना जन्मधाम राजगृही–विपुलाचल तीर्थंने नमस्कार
हो. श्रुतधर सन्तोए ए पावन श्रुतनो प्रवाह मुनिओने ज्यां आप्यो ते पवित्र
गीरनार–चंद्रगूफाने नमस्कार हो....अने संतोए ए पावनश्रुतने पुस्तकारुढ करीने
ज्यां श्रुतनी महापूजा करी ते श्रुतधाम अंकलेश्वरने नमस्कार हो.
भावश्रुतधारी सर्वे वीतरागी सन्तोने नमस्कार हो.
चन्द्रगूफा
सं. २०१४ ना माह सुद दशमना रोज पू. श्री कहानगुरु साथे गीरनार
तीर्थनी यात्रा करवा गयेला त्यारे, गीरनारगिरिनो खोळो खूंदता खूंदता,
धरसेनस्वामीने परमभक्तिथी याद करता करता, चन्द्रगुफा शोधीने तेमां जई
पहोंच्या! अहा, ए चंद्रगूफाना धीर–गंभीर–वैराग्य भरेला उपशांत द्रश्यनी शी
वात! जाणे चारेकोर उपशांतरस छवायेल होय ने तेनी वच्चे बेठा होईए!
गूफाना बाकोरामांथी जोतां जाणे के विश्वथी आत्मानी अत्यंत भिन्नता स्पष्ट
देखाय छे.
आवी गूफामां प्रवेशतां घणो हर्ष थयो. अने तेमांय ते गूफामां
धरसेनस्वामीना अति प्राचीन चरणपादूकानां दर्शन थया त्यारे तो जाणे साक्षात्
धरसेनप्रभुना दर्शन जेवा ज आनंदभक्ति उल्लस्या. अहीं आ गूफामां ज
धरसेनस्वामी रहेता हता ने पुष्पदंत–भूतबलिस्वामीने वीतरागी श्रुतनुं
अगाधज्ञान आपता हता. आपणे पण ए पावन श्रुत लईए एवी सातिशय
उर्मि ए गूफामां जागती हती. षट्खंडागम सिद्धांतनुं आ जन्मधाम......महाभाग्ये
जोवा मळ्‌युं. (आ चंद्रगूफामां वीतरागी गुरुओ वस्या तेथी तेने गुरुजीनी गूफा,
ने हालमां तेना विकृतरूप तरीके गोरजीनी गूफा, कहेवाय छे.)
चंद्रगूफास्थित संतोने अने तेमना दिव्यश्रुतने नमस्कार हो.