Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : ४१ :
उत्तरथी दक्षिण चक्कर लगाव्युं नथी, लगावी
शके पण नहि.
आ उपसेला भाग पर बंने
सूर्यमंडळ (जंबुद्वीपमां बे सूर्य छे–ते) द्वारा
दिवसरातनी व्यवस्था थाय छे.
चित्रापृथ्वीना तळीयाना मूळभागनी जे
अनादिअनंत व्यवस्था छे ते ज व्यवस्था
आजे पण छे; फकत उपर उपसेला भागमां
दिवस–रातनी व्यवस्थामां फरक पडी गयो
छे. –अने ते फरक पण प०००
(पांचहजार) माईलनी तेनी ऊंचाईने
कारणे छे–आ ज कारणे ज्यारे हिंदुस्तानमां
दिवस होय त्यारे अमेरिकामां रात होय छे. दिवस–रातनी व्यवस्था बाबत अहीं विशेष
प्रकाश नथी पाडता केमके अहीं तेनुं प्रकरण नथी. गेगेरीन वगेरे व्यक्तिओए पृथ्वीनी
जे प्रदक्षिणा करी ते आ उपसेला भूभागनी पूर्वथी पश्चिम प्रदक्षिणा करी छे, उत्तरथी
दक्षिण नहीं. वच्चेनो भाग उपसेलो छे ते संबंधी आगमप्रमाण जाणवा माटे
त्रिलोकप्रज्ञप्तिना चोथा अधिकारनी गाथा १पप० थी १प६० वच्चे जुओ.
ज्योतिष–विमानोनो आकार अर्धगोळ छे; तेमां सूर्यमंडळनो व्यास ४८ ६१
योजन छे अने विष्कंभ तेनाथी अडधो एटले २४ ६१ योजन छे. आ एक योजन
प००० पांचहजार माईलनो समजवो. चंद्रमंडळनो व्यास प६ ६१ अने विष्कंभ २४
६१ योजन छे. (एटले सूर्य करतां चंद्र मोटो छे.) (सूर्य अने चंद्रलोकमां वस्ती छे
खरी–मनुष्योनी नहि परंतु देवोनी.–त्यां सुंदर महेलो बागबगीचा जिनमंदिर वगेरे
पण छे, ने त्यांना देवो जिनेन्द्रदेवनी भक्ति–पूजा पण करे छे.
लक्ष्मी अने अधिकार वधतां शुं वध्युं? ते तो कहो;
शुं कुटुंब के परिवारथी वधवापणुं ए नय ग्रहो!
वधवापणुं संसारनुं नरदेहने हारी जवो;
एनो विचार नहीं अहोहो, एक पळ तमने हूवो.