Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : जेठ : २४९२
श्रुत – परिचय
(आ वखते ‘तत्त्वचर्चा’ ने बदले श्रुतपंचमी–निमित्ते
थोडोक श्रुतपरिचय आप्यो छे.)
*
प्रश्न :– श्रुतपंचमी पर्व कयारथी प्रसिद्ध थयुं?
उत्तर :– आजथी लगभग १९०० वर्ष पहेलां गीरनारनी चंद्रगूफामां धरसेनस्वामी
नामना धूरंधर वीतरागीसंत वसता हता; वर्द्धमानप्रभुनी दिव्यध्वनिना
वारसामां तेमने अंगपूर्वनुं जे पवित्र श्रुतज्ञान मळेलुं ते तेमणे पुष्पदंत
अने भूतबलि मुनिवरोने शीखव्युं. ते बंने मुनिओए दिव्यध्वनिना ए
अंशने
षट्खंडागम सिद्धांतरूपे सूत्रारूढ कर्यो. अने ए रीते श्रुतने चिरंजीव
बनाव्युं छे. ते श्रुतप्रत्येनी महान भक्ति अने उत्साहथी अंकलेश्वरमां
चतुर्विध संघे श्रुतनो घणो मोटो उत्सव जेठ सुद पांचमे कर्यो; त्यारथी जेठ
सुद पांचमनो दिवस जैनसमाजमां श्रुतपंचमी तरीके प्रसिद्ध थयो. जे
षट्खंडागम सिद्धान्तनी पूजा निमित्ते श्रुतपंचमी पर्व प्रसिद्ध थयुं ते
षट्खंडागम (धवला टीका सहित) छपाईने आजे प्रसिद्ध थया छे ने
मुमुक्षुओना महाभाग्ये जिनवाणीनो ए अंश आजे स्वाध्याय माटे सुलभ
बन्यो छे.
प्रश्न :– धवल महाधवल जयधवल ते शुं छे?
उत्तर :– ‘धवला’ ए
षट्खंडागम नामना महान सिद्धांत सूत्र उपरनी टीका छे; अने
‘जयधवला’ ए कषायप्राभृत नामना महान सिद्धांत सूत्रनी टीका छे. आ
बंने टीकाना रचनार श्री वीरसेनस्वामी छे. जयधवला टीकानो बाकीनो
भाग श्री जिनसेनस्वामीए पूर्ण कर्यो छे.