
द्रष्टिवाद अंगनो एक अंश षट्खंडागमरूपे गुंथायेलो छे. तेना उपर वीरसेन स्वामीए
७२००० (बोंतेर हजार) श्लोक प्रमाण टीका रची. जे सेंकडो वर्षोथी ताडपात्र उपर
लखेली मूडबिद्रिमां सुरक्षित छे ने हवे थोडा वर्षोथी हिंदी अनुवाद सहित छपाईने १६
पुस्तकोरूपे प्रसिद्ध थयेल छे.
टीका (६००००) साईठ हजार श्लोकप्रमाण रची छे. जे सेंकडो वर्षोथी ताडपात्र उपर
लखेली मूडबिद्रिमां सुरक्षित छे ने हवे थोडा वर्षोथी ते हिंदी अनुवाद सहित छपाईने
प्रसिद्ध थाय छे. (नव पुस्तको छपाया छे, बीजा केटलाक बाकी छे.)
लखेल प्रति मूडबिद्रिना शास्त्रभंडारोमां सुरक्षित छे, ने हालमां हिंदी अनुवाद सहित
प्रकाशित थई गयेल छे. तेना सात पुस्तको छे. आ धवल महाधवल जयधवलरूप
जिनवाणीनी मूळ प्रति ताडपत्र उपर छे, तेनां दर्शन तो दक्षिणदेशना मुडबिद्रि नगरमां
महाभाग्ये थाय छे; अने तेनी छापेली प्रतिनां दर्शन तो हवे सोनगढमां सौराष्ट्र ने
देशभरमां ठेरठेर सुलभ बन्या छे ते पण आपणा महाभाग्य छे. आत्मधर्मना आ
अंकमां आप तेनां दर्शन करी शकशो.
जिनवाणीनो जे अमूल्य वारसो आपणने आपी गया
छे तेनी आराधनानो अने प्रभावनानो सन्देश
आपणने श्रुतपंचमी आपे छे; आवा श्रुतपंचमी पर्वने
श्रुतभक्तिपूर्वक उजवीए.