Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : ४३ :
षट्खंडागमना रचनार श्री पुष्पदंत तथा भूतबली स्वामी छे. वर्द्धमान
तीर्थंकरनी दिव्य वाणीमांथी ईन्द्रभूति गणधरे जे बार अंगनी रचना करी तेमांथी
द्रष्टिवाद अंगनो एक अंश षट्खंडागमरूपे गुंथायेलो छे. तेना उपर वीरसेन स्वामीए
७२००० (बोंतेर हजार) श्लोक प्रमाण टीका रची. जे सेंकडो वर्षोथी ताडपात्र उपर
लखेली मूडबिद्रिमां सुरक्षित छे ने हवे थोडा वर्षोथी हिंदी अनुवाद सहित छपाईने १६
पुस्तकोरूपे प्रसिद्ध थयेल छे.
कषायप्राभृत ना रचनार श्री गुणधरस्वामी छे; यतिवृषभस्वामीए चूर्णिसूत्रो
वडे तेनी स्पष्टता करी छे, अने वीरसेन तथा जिनसेन स्वामीए तेना उपर जयधवला
टीका (६००००) साईठ हजार श्लोकप्रमाण रची छे. जे सेंकडो वर्षोथी ताडपात्र उपर
लखेली मूडबिद्रिमां सुरक्षित छे ने हवे थोडा वर्षोथी ते हिंदी अनुवाद सहित छपाईने
प्रसिद्ध थाय छे. (नव पुस्तको छपाया छे, बीजा केटलाक बाकी छे.)
षट्खंडागम छखंड (छअधिकार) छे, तेमां छठ्ठा खंडनुं नाम महाबंध छे, ते खूब
विस्तृत छे अने ते ज महाधवल तरीके प्रसिद्ध छे. आ महाबंधनी पण ताडपात्र उपर
लखेल प्रति मूडबिद्रिना शास्त्रभंडारोमां सुरक्षित छे, ने हालमां हिंदी अनुवाद सहित
प्रकाशित थई गयेल छे. तेना सात पुस्तको छे. आ धवल महाधवल जयधवलरूप
जिनवाणीनी मूळ प्रति ताडपत्र उपर छे, तेनां दर्शन तो दक्षिणदेशना मुडबिद्रि नगरमां
महाभाग्ये थाय छे; अने तेनी छापेली प्रतिनां दर्शन तो हवे सोनगढमां सौराष्ट्र ने
देशभरमां ठेरठेर सुलभ बन्या छे ते पण आपणा महाभाग्य छे. आत्मधर्मना आ
अंकमां आप तेनां दर्शन करी शकशो.
जेठ सुद पांचमे श्रुतपंचमी छे. श्रुतपंचमी एटले
श्रुतज्ञाननी आराधनानुं महान पर्व वीतरागी; संतो
जिनवाणीनो जे अमूल्य वारसो आपणने आपी गया
छे तेनी आराधनानो अने प्रभावनानो सन्देश
आपणने श्रुतपंचमी आपे छे; आवा श्रुतपंचमी पर्वने
श्रुतभक्तिपूर्वक उजवीए.