: २ : आत्मधर्म : जेठः२४९२
ज्ञानमहिमानुं धारी स्वद्रव्य; तेना संबधे ज सुख;
परनां संबंधे दु:ख
[परमात्मप्रकाश–प्रवचन]
असंख्यसमयना उपयोगवाळुं श्रुतज्ञान–जे हजी रागवाळुं छे छतां पण–अनंत
आकाशने लक्षमां लई ल्ये छे, एटले एक समयमां पण ते ज्ञानमां अनंत जाणवानी
ताकात छे, रागवाळा ज्ञानमां पण जेनी आटली ताकात तो ते ज्ञान राग वगरनुं
थईने. अप्रतिबंधपणे परिणमे त्यारे तेना अचिंत्य सामर्थ्यनी शी वात? ए ज्ञान
त्रणकाळ त्रणलोकने जाणी ल्ये एमां शुं आश्चर्य!!
आवुं महान केवळज्ञान, तेनो स्वामी आत्मा ते महान पदार्थ छे. जेना एक
ज्ञानगुणनी एक समयनी आटली ताकात, तेनामां आवा तो अनंता गुणो भरेला छे.
आवा आत्मतत्त्वनो महिमा आवतां परिणति स्वसन्मुख थईने आनंदनो अनुभव करे छे.
हवे स्वसन्मुख थईने जे आत्मा आनंदनो अनुभव करे छे तेने तेमां परद्रव्यनुं
लक्ष नथी; तेने दुःख नथी एटले परपदार्थो तेने दुःखनां निमित्त पण थतां नथी, तेने
तो पर साथे ज्ञेय–ज्ञायकसंबंध ज छे. जे जीव निजस्वरूपथी भष्ट थईने, परद्रव्यना
आश्रये रागद्वेषमोहथी दुःखरूपे परिणमे छे तेने ज परद्रव्य दुःखनुं निमित्त छे. दुःखनो
संबंध पर साथे छे, सुखनो संबंध पोताना आत्मा साथे छे. परमां उपयोग जोडतां
दुःख थाय छे, ने आत्मामां उपयोग जोडतां सुख थाय छे.
अरे जीव! परद्रव्यनो संबंध तने दुःखनुं कारण थाय छे ने सुख तो स्वद्रव्यमां
एकाग्रताथी ज थाय छे,–आम जाणीने तुं परनो संबंध छोडीने निजशुद्धात्मामां एकाग्र
थईने मोक्षमार्गमां स्थित था.
दुःखनुं कारण शुं?
के सुखस्वरूप स्वद्रव्यने भूलीने परनो संबंध ते ज दुःखनुं कारण.
सुखनुं कारण शुं? सुखनो उपाय शुं?
के सुख जेमा भर्युं छे एवुं जे स्वद्रव्य, तेमां अंतर्मुख थईने परनो संबंध तोडवो
ते ज सुखनुं कारण ने सुखनो उपाय छे.