: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : ३ :
स्वद्रव्याश्रित सुख कहो के स्वद्रव्याश्रित मोक्षमार्ग कहो; ने परद्रव्याश्रित दुःख
कहो के परद्रव्याश्रित बंधमार्ग कहो. ल्यो, आ टूंकमां बंध–मोक्षनो सिद्धांत. जेटलो
स्वस्वभावनो आश्रय तेटलो मोक्षमार्ग; जेटलो परद्रव्यनो आश्रय तेटलुं बंधन; जेटलो
स्वाश्रयभाव तेटलुं सुख; जेटलो पराश्रयभाव तेटलुं दुःख जेटलो स्वाश्रयभाव तेटली
शुद्धता; जेटलो पराश्रितभाव तेटली अशुद्धता.
वाह, केटली चोकखी अने सीधी वात छे!
आ समजीने हे जीव! मोक्षने अर्थे तुं अंतरमां तारा शुद्धात्मस्वभावनो संबंध
कर.....अंतर्मुख परिणति वडे एनी भावना कर.....रत्नत्रयनी भावना वडे मोक्षमार्गमां
लाग. अंतरद्रष्टि वडे तारा उत्कृष्ट परम स्वरूपमां तुं संबंध जोड तो तारुं परिणमन
पण ते तरफ वधी वधीने उत्कृष्ट आनंदरूप थई जशे.
अरे जीव! तुं परमेष्ठी पदने पाम एवी वात अमे तने संभळावीए छीए, तुं ते
सांभळ! जगतना छए द्रव्योने जाणनारो तारो उत्कृष्ट ज्ञानस्वभाव छे, तेना श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्ररूप परिणमन करतां हुं परम–ईष्ट एवा सिद्धपदने पामीश.
* हे वत्स! तारे आत्माने साधवो छे?
हा.
* तो कोनी पासे जईने आत्माने साधीश?
मारा स्वभावनी सन्मुख थईने आत्माने साधीश.
* स्वभावनी सन्मुख कई रीते थईश?
स्वभावने परथी अत्यंत जुदो जाणीने अने निज
सामर्थ्यनो अचिंत्य महिमा लावी लावीने वारंवार
अंतरप्रयत्न करीने स्वभावसन्मुख थईश. ज्ञानस्वभावी
आत्मानो निर्णय करीने ज्ञानने अंतरमां वाळीश.
जगतनी रुचि छोडीने अने स्वभावनी परम रुचि करीने
स्वसन्मुखपरिणति करीश.
* मुख्य काम कयुं छे?
स्वभावनो साधवो ए एक ज मारुं मुख्य काम छे