Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 65

background image
: ४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९२
आत्मानुं जोर
कर्मनुं जोर छे–एम कहीने घणा जीवो अटकी जाय छे;
संतो तेने कहे छे के भाई! कर्मनुं जोर आव्युं क््यांथी? तारा
ऊंधा परिणाममांथी; माटे खरेखर तारा परिणामनुं जोर छे,
कर्मनुं नहीं; एम परिणामनी स्वाधीनता जाणीने,
स्वसन्मुख परिणामथी शुद्धात्माने उपादेय करतां मोक्षमार्ग
प्रगटे छे.
शास्त्रमां कर्मनुं जोर कह्युं होय ते एम सूचवे छे के जीवना
भावमां मिथ्याअभिप्रायनुं तीव्र सेवन छे ने ते ज तेनी शक्तिने रोके
छे. शुद्धआत्मतत्त्व उपादेय करवानो सन्तोनो उपदेश छे, एटले
स्वपुरुषार्थथी स्वसन्मुख परिणामवडे जेणे शुद्धात्माने द्रष्टिमां ने
अनुभवमां लीधो तेने निमित्तपणे कर्मनुं जोर रहेतुं नथी. ने
विकारभावो पण छूटी जाय छे; आ रीते शुद्धात्माने उपादेय करवो ते ज
मोक्षमार्ग छे.
(परमात्मप्रकाश गा. ७८ ना प्रवचनमांथी)
जे परिणाम अंतर्मुख थईने पोताना आत्मस्वभावने जाणे–प्रतीतमां ल्ये ने
अनुभव करे ते परिणामनी ज धर्मीने खरी किंमत छे. ए सिवाय शुभरागनी के
बहारना जाणपणानी किंमत ज्ञानीने नथी. जेनाथी मोक्षमार्ग न सधाय ने जेमां
आत्मानां आनंदनो अनुभव न थाय तेनी शी किंमत? सम्यग्दर्शनादि ते परिणाम ज
खरेखर किंमती छे के जेनाथी मोक्षमार्ग सधाय छे–ने जेमां आत्माना आनंदनो
अनुभव छे. आ सिवाय बहारना संयोगनी, वाणीना विलासनी, विकल्पोनी के बीजा
जाणपणानी महत्ता जेने लागे तेने चैतन्यस्वभावनी महत्तानी खबर नथी, ते बहारना
महिमामां