स्वभावनी महत्ता आव्या वगर परिणाम एमां वळे क््यांथी? जेने जेनी खरी महत्ता
लागे तेना परिणाम तेमां वळे.
असंख्य वर्षोनुं तो शुं पण अनंतकाळनुं जाणी ल्ये एवी ताकात आत्मामां भरी छे.
आत्मानी चैतन्यजातने जाणे ते खरा विचक्षण छे ने तेनी खरी महत्ता छे. पण ए
अंतरनी वात जीवोने लक्षमां आवती नथी.
भूलीने, देह ते हुं ने राग ते हुं–एम जोरपूर्वक ऊंधा अभिप्रायने सेवे छे तेथी बळवान
चीकणां द्रढ कर्म तेने बंधाय छे. जुओ, जेटलुं ऊंधा अभिप्रायनुं जोर हतुं तेटला जोरदार
कर्मो बंधाया; एटले खरेखर कर्मनुं जोर न आव्युं पण जीवना ऊंधा अभिप्रायनुं जोर
आव्युं. त्यारे निमित्तपणे कर्म बंधाया ते जीवनी शक्तिने रोकवामां निमित्त थाय छे.
पण ऊंधा अभिप्रायना जोरथी बंधायेलां द्रढ–चीकणां कर्मोने सम्यक्त्व परिणामना बळे
जीव क्षणमां तोडी नांखे छे. सम्यक्त्वना परिणमनथी जीव आठे दुष्ट कर्मोनो क्षय करी
नांखे छे–ए वात तो पहेलां ज बतावी छे.
तीव्र कर्मो बंधाय नहि. कर्मो जीवना भावअनुसार बंधाय छे. अहो, अनंत
चैतन्यशक्तिनो धारक आ विलक्षण आत्मा, तेणे पोते पोतानी विराधनाथी बांधेला
कर्मोए तेनुं आच्छादन कर्युं छे; पण जो अंतर्मुख थईने पोते शुद्धात्माने उपादेय करे तो
कर्मो पण नष्ट थई जाय छे. कर्मनुं जोर क््यारे कह्युं? के जीवे विपरीतभावनुं तीव्र सेवन
कर्युं त्यारे तेनाथी जे कर्मो बंधाया तेनुं जोर कह्युं, ने कर्मे जीवने पाडयो एम निमित्तथी
कह्युं, पण जीवना ऊंधा परिणाम वगर कोई तेने पाडी शके नहि. शुद्ध–अभेद
रत्नत्रयरूप जे मोक्षमार्ग तेनाथी जीव पोते भ्रष्ट थयो ने ऊंधा भावने सेव्या त्यारे ज
कर्मने जोर मळ्युं. कर्ममां जोर आव्युं क्यांथी? के जीवे ऊंधा भावथी मिथ्यात्वादिनुं सेवन
कर्युं. तेमांथी कर्ममां जोर आव्युं. एटले जीवना ऊंधा भावनुं जोर अने कर्म ए बंनेने
एक गणीने कह्युं के कर्मे जीवने निजशक्तिथी च्युत कर्यो ने