: ६ : आत्मधर्म : जेठ : २४९२
रखडाव्यो. जीव कांई पोते पोताना स्वभावथी न रखडे, एटले ते स्वभावने जुदो
राखीने, जे ऊंधाभाव छे तेने कर्ममां नांखी दीधा ने कर्मनुं जोर कह्युं. पण कर्मने
बळवान थवामां भूल तो जीवनी पोतानी छे. पोते पोताना स्वभावनी किंमत न
जाणतां, बहारना अल्प जाणपणामां के शुभरागमां अटकीने तेनी ज महत्ता मानी, ते
मिथ्याअभिप्रायने लीधे कर्ममां तीव्र रस पड्यो; अने ते केवळज्ञानादिने रोकवामां
निमित्त थयुं. पण जो पोते पोताना स्वभावने उपादेय करीने पोतानुं जोर प्रगट करे तो
कर्मनुं जोर तूटी जाय छे ने जीवना केवळज्ञानादि अनंतगुणो प्रगटे छे.
कर्मनुं जोर क्यारे? के तें ऊंधा भावथी तेने निमित्त बनाव्युं त्यारे; पण जो तुं
पोते तारा स्वभावने उपादेय करीने अनुभवमां ले ने कर्मने भिन्न जाण, तो
निश्चयमोक्षमार्ग प्रगटे, ने अशुद्धतानो तथा कर्मनो संबंध नाश थाय.
आ रीते शुद्धतामां ने अशुद्धतामां बंनेमां जीवनो पोतानो अधिकार छे. तें
परभावने अने कर्मने उपादेय मान्या त्यारे ते तरफ तारुं जोर वळ्युं एटले तेने जोरदार
कह्या; तुं तारा स्वभावने उपादेय कर तो तारुं जोर स्वभाव तरफ वळे; एटले
स्वभावना पुरुषार्थरूप मोक्षमार्ग प्रगटे, ने कर्मनुं के विकारनुं जोर तूटी जाय. आ रीते
बंधमार्गमां के मोक्षमार्गमां आत्मानुं ज जोर छे. बंधमार्गमां जीवना ऊंधा परिणामनुं
जोर छे, ने मोक्षमार्गमां जीवना सम्यग्दर्शनादि सवळा परिणामनुं जोर छे.
अहा, चैतन्यतत्त्वनी अचिंत्य ताकात!! तेना अनुभव पासे शास्त्रोनां
भणतरनीये कांई किंमत नथी. व्यवहारनां जाणपणां के व्यवहारना शुभआचरण,
एनाथी पर चैतन्यनो मार्ग छे. आवा चैतन्यतत्त्वने अंतरनी अभेदद्रष्टिमां ने
अनुभवमां लेवुं ते ज मोक्षमार्ग छे.
लोभीया माणस पासे जवुं लक्ष्मीने गमतुं नथी,–
केमके ते तेने जेलमां पूरी राखे छे, क््यांय जवा देतो नथी.
उदार माणस पासे जवुं लक्ष्मीने गमे छे,–केमके ते तेने
छूटथी हरवाफरवा दे छे, जेलमां पूरी राखतो नथी.