Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: आत्मधर्म : : ४प अ:
जिनवाणीरूप गंगाना प्रवाहने अछिन्न राखनार
सौराष्ट्रनी श्रुतवत्सल संत – त्रिपुटी
(षट्खंडागमकी रचनाका पावन इतिहास)
जिनवाणीना प्रवाहमांथी अंग–पूर्वना एक देशना ज्ञाता श्री धरसेनाचार्य
षट्खंडागमना विषयना ज्ञाता हता. तेओ सोरठदेशना गिरिनगरनी चन्द्रगूफामां
ध्यान करता हता. नंदीसंघनी पट्टावली–अनुसार तेओ महावीरप्रभुनी ३१ मी पेढीए
(वीरनिर्वाण पछी लगभग ६४३ वर्षे) थया. तेओ अंग–पूर्वोना एकदेशज्ञाता तेमज
भारे विद्वान अने श्रुतवत्सल हता. वीरप्रभुनी परंपराथी आवेला आ श्रुतज्ञाननो
प्रवाह अच्छिन्न रहे एवी श्रुतभक्तिथी प्रेराईने, महिमानगरीना मुनिसंमेलनमां तेमणे
पत्र लखाव्यो.
महिमानगरीना यतिसंमेलनमां ज्यारे पत्र मळ्‌यो त्यारे तेमना श्रुतरक्षासंबंधी
अभिप्रायने जाणीने संघे बे साधुओने पसंद करीने गिरिनगर मोकल्या; तेओ
विद्याग्रहण करवामां अने तेनुं स्मरण राखवामां समर्थ हता, अत्यन्त विनयशील अने
शीलवान हता. तेमना देश–कूळ ने जाति शुद्ध हता, अने तेओ समस्त कलाओमां
पारंगत हता. ज्यारे ते बे मुनिवरो आ तरफ आवी रह्या हता त्यारे अहीं
धरसेनस्वामीए एवुं शुभ स्वप्न जोयुं के बे सफेद धोरी बळद आवीने विनयपूर्वक
वंदना करी रह्या छे....ए स्वप्न उपरथी तेमणे जाण्युं के आवनारा बंने मुनिओ
विनयवान अने धर्म–