Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : प१ :
कारण–अनुसार कार्यं
भगवान श्री सीमंधरप्रभुना समवसरणमां कुंदकुंदाचार्य देव अहींथी गया हता–
ते वात अनेक प्रमाणथी साक्षात् सिद्ध थयेली छे. तेमणे विदेहमां आठ दिवस तीर्थंकर
परमात्मानी दिव्यवाणी साक्षात् सांभळी तेमज पोते शुद्धात्मानो साक्षात्कार करीने
स्वानुभव कर्यो, ते वात तेमणे आ नियमसार वगेरे परमागमोमां दर्शावी छे.
आ आत्मा सर्व परभावोथी रहित छे, ने जेवा सिद्धभगवान छे तेवो ज आ
आत्मा छे. सिद्धभगवानने जेवा गुण व्यक्त थया छे. तेवा गुणोनुं सामर्थ्य दरेक
आत्मामां छे. सिद्धपद प्रगटवाना कारणरूप स्वभाव दरेक आत्मामां सदा त्रिकाळ
परिपूर्ण छे. आवा कारण–स्वभावने लक्षगत करतां सम्यग्दर्शनादि कार्य प्रगटी जाय छे–
शुद्धकारणने अनुसरतां शुद्ध कार्य खीली जाय छे.
जेने पोताना आवा कारणस्वभावनी खबर नथी तेने पण शक्तिरूपे तो जोके
ए स्वभाव सिद्ध जेवो विद्यमान ज छे, पण तेने निर्मळ कार्य पर्यायमां प्रगटतुं नथी,
एटले तेने पर्यायमां मलिनता–अशुद्धता विकार छे. तेना आश्रयनी बुद्धि छोडाववा
आचार्यदेव समजावे छे के हे भाई, जेवा सिद्धिगत जीवो छे तेवो ज तुं छो. सिद्धना
आत्मामां जेटलो वैभव छे, तारामां पण तेटलो ज वैभव छे, सिद्ध जेवो ज तुं छो–एम
लक्षगत करीने तारा स्वभावनो तुं आश्रय कर तो पर्यायमांथी तारी अशुद्धता टळी जशे
ने सम्यग्दर्शनादि शुद्धता प्रगट थशे. कारण–अनुसार कार्य थाय छे; जेवा कारणने जीव
अनुसरे तेवुं कार्य थाय छे. पोताना शुद्धस्वभावने कारणपणे अनुसरतां पर्यायमां तेवुं
शुद्ध कार्य प्रगटी जाय छे.
(प्रवचन वै. सुद बीज)
अहा, वीरनाथनी दिव्यध्वनिना प्रवाहनो अंश षट्खंडागम्रूपे
संघरायेलो ते ज्यारे छपाईने पहेलवहेलो प्रसिद्ध थयो ने हजारो
भक्तोना हाथमां आव्यो त्यारे ए श्रुतभक्तोने पोताना हाथमां
जिनवाणी नीहाळीने केवो अपार हर्ष थयो हशे! जेना दर्शन पण
दुर्लभ–ए वस्तु करकमळमां आवी गई....धनभाग्य!