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परमात्मानी दिव्यवाणी साक्षात् सांभळी तेमज पोते शुद्धात्मानो साक्षात्कार करीने
स्वानुभव कर्यो, ते वात तेमणे आ नियमसार वगेरे परमागमोमां दर्शावी छे.
आत्मामां छे. सिद्धपद प्रगटवाना कारणरूप स्वभाव दरेक आत्मामां सदा त्रिकाळ
परिपूर्ण छे. आवा कारण–स्वभावने लक्षगत करतां सम्यग्दर्शनादि कार्य प्रगटी जाय छे–
शुद्धकारणने अनुसरतां शुद्ध कार्य खीली जाय छे.
एटले तेने पर्यायमां मलिनता–अशुद्धता विकार छे. तेना आश्रयनी बुद्धि छोडाववा
आचार्यदेव समजावे छे के हे भाई, जेवा सिद्धिगत जीवो छे तेवो ज तुं छो. सिद्धना
आत्मामां जेटलो वैभव छे, तारामां पण तेटलो ज वैभव छे, सिद्ध जेवो ज तुं छो–एम
लक्षगत करीने तारा स्वभावनो तुं आश्रय कर तो पर्यायमांथी तारी अशुद्धता टळी जशे
ने सम्यग्दर्शनादि शुद्धता प्रगट थशे. कारण–अनुसार कार्य थाय छे; जेवा कारणने जीव
अनुसरे तेवुं कार्य थाय छे. पोताना शुद्धस्वभावने कारणपणे अनुसरतां पर्यायमां तेवुं
शुद्ध कार्य प्रगटी जाय छे.
भक्तोना हाथमां आव्यो त्यारे ए श्रुतभक्तोने पोताना हाथमां
जिनवाणी नीहाळीने केवो अपार हर्ष थयो हशे! जेना दर्शन पण
दुर्लभ–ए वस्तु करकमळमां आवी गई....धनभाग्य!