Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: प२ : आत्मधर्म : जेठ : २४९२
वीरप्रभुना वंशज
नंदीसंघनी प्राकृत–पट्टावली अनुसार वीरप्रभुनी २९मी पेढीए अर्हंत्बली
मुनिराज थया; ३०मी पेढीए माघनन्दी मुनिराज थया. माघनन्दीस्वामीना बे शिष्य–
(१) जिनसेनस्वामी (२) धरसेनस्वामी.
जिनसेनस्वामीना शिष्य श्री कुन्दकुन्दाचार्य.
धरसेनस्वामीना शिष्य पुष्पदंत–भूतबलि (विद्या अपेक्षाए)
आ हिसाबे धरसेनस्वामी वर्धमानतीर्थंकरनी ३१मी पेढीए थया, अने
कुंदकुंदस्वामी तेमज पुष्पदन्त–भूतबलि आचार्यो ३२ मी पेढीए थया. एटले
धरसेनस्वामी ते कुन्दकुन्दाचार्यना काका–गुरु थाय. कुंदकुंदस्वामी तथा पुष्पदंत–
भूतबलीस्वामी तेओ बीजी पेढीए) गुरु–भाई थाय.
षट्खंडागम सिद्धांत उपर जे अनेक टीकाओ रचायेली छे तेमां सौथी पहेली
टीका परिकमर् छे, अने ते ‘परिकर्म’ नी रचना कौण्डकौण्डपुरमां पद्मनंदीमुनिए करी
हती. षट्खंडागम ना छ खंडमांथी प्रथम त्रण खंडो उपर परिकर्म नामक बारहजार
श्लोकप्रमाण टीकाग्रंथ तेमणे रच्यो हतो. धवल–जयधवल टीकामां वीरसेनस्वामीए
पोताना कथननी पुष्टि माटे केटलाय ठेकाणे ‘परिकर्म’ ना कथननो उल्लेख कर्यो छे.
धवल–महाधवल ने जयधवलनी मुडबिद्रिनी ताडपत्रीय प्रतो
उपरथी तेनी प्रतिलिपि (नकल) करवानुं भगीरथ कार्य २६ वर्ष (ई.
स. १८९६ थी १९२२) सुधी चाल्युं. एटला समयमां सात पंडितोद्वारा
कानडी तथा नागरी प्रतिलिपि लखाणी ने आ कार्यमां लगभग
वीसहजार रूा. खर्च थयुं. (पचासवर्ष पहेलांना जमानामां वीसहजार
एटले अत्यारना बे लाखथी वधु)
षट्खंडागम (धवलटीकासहित) ना
संपादन–प्रकाशन कार्यने २० वर्ष लाग्या हता. (ई. स. १९३८ थी
१९प८)