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प्रभावनानो कोई महत्काळ आवी रह्यो होवानां चिह्नो जणाय छे. महावीरप्रभुनी
जन्मजयंति देशभरना मुख्य केन्द्रोमां घणा उल्लासथी उजवाय छे जेमां जनसमूह घणी मोटी
संख्यामां भाग ल्ये छे. आ प्रसंगे दिल्हीमां रामलीला मेदानमां पचास हजारनी मेदनीए
महावीरजीवननुं श्रवण कर्युं; तथा माननीय राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति, वडाप्रधान वगेरे
राष्ट्रनेताओनां सन्देश आव्या हता. वैशाली (बिहार) के जे वीरप्रभुनी साची जन्मभूमि छे
त्यां खास विशेषतापूर्वक दरवर्षे महावीर जयन्ती उजवाय छे. उत्सव प्रसंगे लगभग बे
लाख (२, ००, ०००) नी संख्यामां जैन–जैनेतर जनता उपस्थित हती. जन्मस्थाननी
आसपासनी भूमिनो पण त्यांना लोकोमां एटलो महिमा छे, के अहिंसाधर्मना प्रणेता ज्यां
जन्म्या ते भूमिने अहिंसक राखवा माटे त्यांना खेतरमां लोको सेंकडो वर्षोथी हळ पण जोडता
नथी. आ भूमिमां जैनविद्यापीठ चाले छे–जेनुं शिलान्यास भारतना भूतपूर्व राष्ट्रपति
राजेन्द्रप्रसादजीए कर्युं हतुं. बिहारना मुख्य मंत्री पण महावीरजयंति उत्सवमां संमिलित
हता. हजारीबागमां वीरजयंतीनी सभामां वीस हजार जेटली उपस्थिति हती. आग्रामां
महावीरजयंतीनो संदेश सांभळवा लगभग पचास हजारनी संख्यामां जनता एकठी थई
हती. मुंबईमां वीर जन्मजयंती उजववा समस्त जैनोनी संयुक्त सभा आझाद मेदानमां थई
हती; तथा सांजे चोपाटी उपर घणी मोटी जाहेरसभा थई हती. आ उपरांत कलकत्ता–
ईन्दोर–भोपाल वगेरे स्थळोए पण खुब उत्साहथी वीरजन्मोत्सव उजवायो हतो. आ रीते
वीरजयंतीनुं मंगलपर्व आखा देशने जागृत करे छे. सौराष्टमां पण ठेरठेर वीरजयंती जोके
उत्साहथी ऊजवाय छे परंतु हजी खास विशेष प्रकारना आयोजननी तथा जागृतीनी
जरूर छे.
श्री कानजीस्वामी साथे अनेकविध तात्त्विकचर्चा प्रसन्नताना वातावरणमां थई हती.