* * * लेखांस्क : १२ मो * * *
आ वखते ‘तत्त्वचर्चा’ ना आ विभागमां पू. गुरुदेव
पासे थयेल रात्रिचर्चानो सार आपीए छीए.
(१११) एकरूप अभेद आत्मवस्तु निरपेक्ष छे अने तेनी रुचि करवी ते पण परथी
ने रागथी निरपेक्ष छे.
(११२) पोताना एकरूप परम स्वभावनुं लक्ष अने रुचि करवी ते ज सार छे, बाकी
बधुं तो समजवा जेवुं–एटले के असार छे.
(११३) पोतानी एकरूप वस्तुनुं लक्ष करतां आनंद प्रगटे. आ द्रव्य ने आ गुण,
अथवा आ द्रव्य ने आ पर्याय एवा भेद ज्यां नथी, द्रव्य–गुण–पर्यायथी
अभेद वस्तुनी अनुभूति छे; तेमां अतीन्द्रियआनंद पण भेगो ज छे. भेदना
लक्षमां ते आनंद प्रगटे नहि.
(११४) सर्वज्ञस्वभावथी भरेलो जे अखंड आत्मस्वभाव, तेनी जेने रुचि थई तेने
केवळज्ञान थवानुं ज छे.
(११प) ज्यां स्वभावनी रुचि थई त्यां परिणति ते तरफ परिणमवा लागी एटले
सर्वज्ञतानुं साधकपणुं शरू थयुं ने अल्पकाळे सर्वज्ञता थशे.
(११६) विकल्प विनानी अभेद वस्तु द्रष्टिमां आवे तो ज श्रद्धा साची होय. विकल्प
उपर द्रष्टि (रुचि) होय तो शुद्धात्मानी श्रद्धा साची न होय.
(११७) वीतराग मार्गनो आ अबाधित सिद्धांत छे के कल्याण ने मोक्षमार्ग
आत्मस्वभावना आश्रये ज थाय, बीजा कोईना आश्रये न थाय.
(११८) स्वानुभूतिना जोरथी साधक कहे छे के हे सिद्धपरमात्मा! जेवो आनंद तमारो