जे जीव चैतन्यनी परम शांतिने माटे तरफडे छे. तेना सिवाय बीजुं कांई जेने जोईतुं
नथी,–एवा मोक्षाभिलाषी भव्य जीवने माटे आ योगसारना १०८ दोहरा रचाय छे.
पोताना आत्माने संबोधवानी मुख्यता सहित भव्य जीवोने माटे आ दोहरा रचाय छे.
लागे; जेम कोईने बे दिवस पछी फांसी देवानुं नक्की थयुं होय तो ते माणस भयभीत
वर्ते छे बधेथी तेनो रस ऊडी जाय छे; तेम आत्माना सुखना अभिलाषी मोक्षार्थी
जीवने चारे गतिना अवतार त्रासरूप लागे छे, जगत आखामांथी रस ऊडी गयो छे,
पुण्यनो रस ऊडी गयो छे ने एक आत्मसुखनी ज तालावेली लागी छे.–एवा जीवने
आत्मानुं स्वरूप समजाववा माटे आ उपदेश छे.
उच्च भावनाना संस्कारो रेडाय छे ते आ काव्यमां देखाय छे.)
मारे हवे प्रिय करवा छे शुद्ध भावो......
समकित–ज्ञान–चारित्रादि निजभावने पामवा......मारे
रत्नत्रय सहित मुनिमार्गमां विचरवा......मारे
मुज जीवनमां आत्मधून जगाववा......मारे
एक उपयोगे शुद्धभावमां लीन रहेवा......मारे
तीर्थंकर समीप केवलज्ञान सहित विचरवा......मारे