Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९२ आत्मधर्म : ९ :
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जीव जुदा पुद्गल जुदा, यही तत्त्वका सार; अन्य कछू व्याख्यान जो, याहीका विस्तार।।
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(स्वतत्त्वने प्रमेय करवानी प्रेरणा)
पूज्यपाद स्वामी ईष्टोपदेशनी प०मी गाथामां
सर्व शास्त्रनुं टूंकु रहस्य बतावतां कहे छे–जीव अने
पुद्गलनी भिन्नता जाणीने स्वतत्त्वनुं ग्रहण करवुं ते
ज सर्व तत्त्वनो सार छे, ने बीजो जे कांई उपदेश छे
ते बधो आनो ज विस्तार छे. जीव–पुद्गलने भिन्न
जाणीने स्वतत्त्वने कई रीते प्रमेय करवुं ने स्वतत्त्वने
प्रमेय करतां अंतरमां शुं थाय? तेनुं बहु सरस वर्णन
गुरुदेवे आ प्रवचनमां कर्युं छे. (जेठ सुद पूर्णिमाए)
शेठश्री चीमनलाल हिंमतलालना मकानना वास्तु–
प्रसंगनुं आ प्रवचन छे.
* * *
जीव–पुद्गलनी भिन्नता जाणीने, रागादिथी पार एवा शुद्ध आत्माने
अनुभवमां लेवो ते ज सर्व शास्त्रोनो सार छे, ज्ञान–स्वभावी आत्मामां
प्रमेयत्वस्वभाव पण छे एटले ज्ञानने अंतर्मुख करतां ते प्रमेय थाय छे.
कोई पूछे के आत्मा जणाय?
तो कहे छे के–हा;
केमके आत्मामां प्रमेय थवानो एटले ज्ञानमां ते जणाय तेवो स्वभाव छे; ने
जाणवानो पण पोतानो स्वभाव छे. आ रीते आत्मा पोते पोताने जाणी शके छे.
आत्मानुं सत्पणुं–सत्यपणुं देहादिथी भिन्न छे, रागादिथी पण सत्स्वभाव जुदो