Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९२
(२२प) साचुं शरण
जीवनुं शरण कोण?
जीवनुं शरण शुध्धोपयोग छे.
जीवने त्रास कोनो?
जीवने त्रास परभावनो.
(२प६) पुण्य....पाप....अने जड
पैसाथी धर्म नथी; पैसाथी पुण्य नथी; पैसाथी पाप नथी.
देहथी धर्म नथी; देहथी पुण्य नथी; देहथी पाप नथी.
शुद्धभावथी धर्म छे; शुभभावथी पुण्य छे; अशुभभावथी पाप छे.
ने पैसा–देह वगेरे तो जड छे.
(२प७) स्वानुभूति माटेनुं उपयोगी ज्ञान
बहारना पदार्थोनुं ज्ञान आत्मानी स्वानुभूति माटे कार्यकारी थई शकतुं नथी.
आत्मानो रंग लगाडीने ज्ञान आत्मा तरफ वळे त्यारे ज स्वानुभूति थाय छे.
(२प८) आत्मा स्वाधीनताथी ज सधाय
मारा स्वभावगुण मने बीजा कोई आपे के ते प्रगट करवा बीजो कोई
मदद करे, तेनी प्राप्तिमां बीजो कोई मने विघ्न करे एवी मान्यता ते
पराधीनता छे; पराधीनता वडे आत्माने कदी साधी शकाय नहि.
मारा स्वभावगुण मारामां ज छे ने ते प्रगट करवा हुं स्वतंत्र छुं–एवी
स्वाधीन बुद्धि वडे आत्माने साधी शकाय छे.
(२प९) गरमीथी बचवा समुद्रमां डूबकी
अंर्तस्वरूपमां चैतन्यरसथी भरपूर केवळज्ञान–समुद्र आनंदतरंगोथी
हिलोळा मारे छे.....आत्मप्रीतिवडे तेमां डूबकी मारीने लीन था–तो संसारना
तारा बधा आताप शमी जशे ने तने मोक्षनी परम शीतळ शांति अनुभवाशे.
(२६०) जड, पुण्य, ने ज्ञान
पुण्यथी धर्म थाय नहि.
आत्मा जडनां कारण करी शके नहि
जडथी भिन्न ने पुण्यथी पार एवुं जे ज्ञान, ते आत्मानुं खरुं कार्य छे ने तेमां
आत्मानो धर्म छे.
मग्न नग्न ने भग्न
चैतन्यमां मग्न ते साचा नग्न,
बाकी बधा मोक्षमार्गथी भग्न.