Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 23 of 53

background image
: २० : आत्मधर्म : अषाढ : २४९२
भगवान ऋषभदेव
तेमना छेल्ला दश अवतारनी कथा
(महापुराणना आधारे ले. ब्र. ह. जैन: लेखांक त्रीजो)
सोनगढ–जिनमंदिरना चित्रोमांथी पांच चित्रोनो परिचय ‘आत्मधर्म’ मां अपाई गयो
छे; छठ्ठा चित्रमां, श्री ऋषभदेव भगवानना आत्माने पूर्वे सातमा भवे भोगभूमिना अवतारमां
सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थाय छे–तेनुं द्रश्य छे. आ कथानो संबंध तेमना दसमा भवथी शरू थतो
होवाथी आपणे अहीं ऋषभदेवप्रभुना पूर्वना दसमा भवथी कथानी शरूआत करी छे. दसमा भवे
ते जीव महाबलराजा हतो अने त्यां स्वयंबुद्ध मंत्रीना उपदेशथी तेने जैनधर्मनो प्रेम थयो.
त्यारपछी नवमा भवे ते स्वर्गमां ललितांग देव थयो अने त्यां स्वयंप्रभा देवी साथे तेने संबंध
थयो; त्यार पछी आठमा भवे ते बंने वज्रजंघ अने श्रीमती थया छे; तेओ, १–मतिवर मंत्री २–
आनंद पुरोहित ३–धनमित्र शेठ अने ४–अकंपन सेनापति ए चारे सहित, पुंडरिकिणीनगरी तरफ
जई रह्या छे.....जतां जतां वच्चे शष्प सरोवरना किनारे पडाव नांख्यो छे ने भोजननी तैयारी करी
छे. एवामां त्यां एक आनंदकारी घटना बनी....शुं बन्युं? ते जाणवा माटे हवे आगळ वांचो.
एकाएक दमधर अने सागरसेन नामना बे गगनविहारी मुनिवरो त्यां पधार्या. आ बंने
मुनिराजने वनमां ज आहार लेवानी प्रतिज्ञा हती, तेओ अतिशय तेजस्वी हता. अने
पवित्रताथी तेओ एवा सुशोभित हता–जाणे के स्वर्ग अने मोक्षनो साक्षात् मार्ग ज होय.–आवा
बंने मुनिवरो विहार करता करता वज्रजंघना तंबुनी समीप आवी पहोंच्या ते मुनिवरोने जोतां ज
वज्रजंघ अने श्रीमतीए ऊठीने आश्चर्यपूर्वक तेमने पडगाहन कर्युं.