: अषाड : २४९२ आत्मधर्म : २१ :
भक्तिथी अर्घ चडावीने नमस्कार कर्या, अने योग्यविधिपूर्वक भोजनशाळामां
प्रवेश कराव्यो. त्यां वज्रजंघे तेमने उच्च स्थाने बेसाडया, तेमना चरणोनुं प्रक्षालन कर्युं,
पूजा करी, नमस्कार कर्या; पछी मन–वचन–कायानी शुद्धिपूर्वक दाताना सात गुणो–श्रद्धा,
संतोष, भक्ति वगेरे सहित विशुद्ध परिणामथी ते उत्तम मुनिवरोने विधिपूर्वक
आहारदान दीधुं. (हजी एने खबर नथी के जेने पोते आहारदान आप्युं ते पोताना
पुत्रो ज हता.) उत्तम आहारदानना प्रभावथी तरत ज त्यां आश्चर्यकारी पांच वस्तु
प्रगट थई– (१) देवो आकाशमांथी रत्नवृष्टि करवा लाग्या (२) पुष्पवर्षा करवा
लाग्या, (३) आकाशगंगामांथी सुगंधी जळना छंटकावपूर्वक मंदमंद सुगंधी वायु वहेवा
लाग्यो, (४) गंभीर दुंदुभि वाजां वागवा मांडया, अने (प) चारे दिशामां “अहो
दान....अहो दान” एवा शब्द थवा लाग्या.
आहारदान बाद बंने मुनिराजोने वंदन अने पूजन करीने वज्रजंघे ज्यारे तेमने
वळाव्या त्यारे अंतःपुरनी दासीए कह्युं; राजन्! आ बंने मुनिवरो तमारा सौथी नाना
पुत्रो ज छे. ए सांभळतां ज वज्रजंघ अने श्रीमती अतिशय प्रेमपूर्वक ते मुनिवरोनी
नीकट गया अने तेमनी पासेथी धर्मनुं श्रवण कर्युं. त्यारबाद वज्रजंघे पोताना तथा
श्रीमतीना पूर्वभव पूछया. मुनिवरोए ते बंनेना पूर्वभवोनुं वर्णन कर्यु. त्यारबाद
वज्रजंघे फरीने कुतूहलथी पूछयुं–हे नाथ! आ मतिवर मंत्री, आनंद पुरोहित, धनमित्र
शेठ अने अकंपन सेनापति–ए चारेय मने भाईनी जेम अतिशय वहाला छे, माटे कृपा
करीने आप तेमना पण पूर्वभव कहो.
मुनिराजे कह्युं; हे राजन्! आ मतिवर मंत्रीनो जीव पूर्वे एक भवमां सिंह हतो;
एकवार वनमां प्रीतिवर्धन राजाए मुनिने आहारदान दीधुं ते देखीने सिंहने
जातिस्मरण थई गयुं, तेथी ते अतिशय शांत थई गयो ने आहारादिनो त्याग करीने ते
सिंह एक शीला उपर बेसी गयो. मुनिराजे अवधिज्ञानवडे ते जाणीने प्रीतिवर्धन
राजाने कह्युं: हे राजन्! आ पर्वत उपर कोई एक सिंह श्रावकना व्रत धारण करीने
संन्यास करी रह्यो छे, तमारे तेनी सेवा करवी योग्य छे; भविष्यमां ते भरतक्षेत्रना
पहेला तीर्थंकर ऋषभदेवनो पुत्र थशे. अने चक्रवर्ती थईने ते ज भवे मोक्ष जशे.
मुनिराजनी ए वात सांभळीने राजाए ते सिंहने प्रेमथी जोयो, अने तेना कानमां
नमस्कारमंत्र संभळाव्यो. अढार दिवसना संथारा बाद देह छोडीने ते सिंह बीजा
स्वर्गनो देव थयो अने त्यांथी च्यवीने आ मतिवर मंत्री थयो छे.
वळी ते सिंह उपरांत प्रीतिवर्द्धनराजाना सेनापति, मंत्री अने पुरोहित–ए
त्रणेए पण आहारदानमां अनुमोदन आपेलुं, तेथी तेओ भोगभूमिनो अवतार करीने
पछी बीजा स्वर्गना देव थया. तमारी (वज्रजंघनी) ललितांगदेवनी पर्यायमां ए त्रणे
तमारा ज