: २२ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९२
परिवारना देवो हता अने तेओ ज अहीं तमारा पुरोहित, शेठ अने सेनापति थया छे.
–आ प्रमाणे बे मुनिवरोए वज्रजंघने तेना मंत्री–पुरोहित–शेठ अने
सेनापतिना पूर्वभवोनो संबंध कह्यो.
ज्यारे ए बे मुनिवरो वज्रजंघने आ बधो वृत्तांत कही रह्या हता, त्यारे
नोळियो, सिंह, वांदरो अने भूंड ए चार जीवो त्यां समीपमां बेठा हता अने शांतिथी
मुनिराज तरफ टगटग नीहाळी रह्या हता. ते जोईने आश्चर्यथी वज्रजंघे पूछयुं: हे
स्वामी! आ नोळियो, सिंह, वांदरो अने भूंड ए चारे जीवो अहीं मनुष्योनी वच्चे पण
निर्भयपणे आपना मुखकमळ तरफ नजर मांडीने केम बेठा छे?
तेना उत्तरमां श्री मुनिराजे कह्युं: सांभळ, हे राजन्! आ सिंह वगेरे चारे जीवो
तारुं आहारदान देखीने परम हर्ष पाम्या छे.
आ सिंह पूर्वभवे हस्तिनापुरमां एक वेपारीनो पुत्र हतो पण तीव्र क्रोधने लीधे
ते मरीने सिंह थयो छे.
आ भूंड पूर्वभवे एक राजपूत्र हतो, पण तीव्र मानने लीधे ते मरीने भूंड थयो छे;
आ वांदरो पूर्वभवे एक वणिकपुत्र हतो, पण तीव्र मायाने लीधे वांदरो थयो छे;
अने आ नोळियो पूर्वे एक हलवाई हतो, पण तीव्र लोभने लीधे मरीने
नोळियो थयो छे.
अत्यारे आ चारे जीवो आहारदान देखीने अतिशय हर्षित थया छे अने ते
चारेयने जातिस्मरण थयुं छे तेथी तेओ संसारथी एकदम विरक्त थई गया छे, अने
निर्भयपणे धर्मश्रवण करवानी ईच्छाथी अहीं बेठा छे.