पाम्या.... माटे संसारनी आवी स्थितिने धिक्कार हो. ‘हे भव्य जीवो! भोगोमां
आसक्तिथी जीवनी आवी दशा थाय छे, तो पछी दुःखकारी एवा ए भोगोथी शुं
प्रयोजन छे? तेने छोडीने जिनेन्द्रदेवना वीतरागधर्ममां ज प्रीति करो.
अवतार पूरो करीने अहीं अवतरे ते पहेलां आ क्षेत्रनो थोडोक परिचय करी लईए.
त्यां भोजन, वस्त्र, आभूषण, दीपक, वाजिंत्र वगेरे देनार कल्पवृक्षो छे, ते रत्नमय
कल्पवृक्षो पोतानी प्रभावडे चारे बाजु प्रकाश फेलावी रह्यां छे. आ वृक्षो अनादिनिधन
छे, आ उपरोक्त फळ देवानो तेमनो स्वभाव ज छे. जेम आजकालना सामान्य वृक्षो
समय पर अनेकविध फळ आपे छे तेम ते कल्पवृक्षो पण दानना फळमां जीवोने अनेक
अहीं उत्पन्न थाय छे. अहींना जीवो चक्रवर्ती करतां पण वधारे सुखी छे.
अनुमोदन कर्युं हतुं एवो नोळियो, सिंह, वांदरो अने भूंड–ए चारे जीवो पण
आहारदाननी अनुमोदनाना प्रभावथी दिव्य मनुष्यशरीर पामीने अहीं ज उपज्या
अने भद्रपरिणामी आर्य थया. मतिवरमंत्री, आनंदपुरोहित, धनमित्र शेठ तथा
अकंपनसेनापति ए चारेय जीवो वज्रजंघ–श्रीमतीना मृत्युथी वैराग्य पामीने दीक्षित
थया अने रत्नत्रयनी आराधना करीने स्वर्गलोकमां पहेली गै्रवेयकमां अहमीन्द्र थया.
छे, अने जे मुमुक्षुओने सम्यक्त्वनी प्रेरणा जगाडे छे–ते प्रसंगनुं रोमांचकारी वर्णन
हवेना लेखांकमां आवशे.)