Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९२
पाम्या.... माटे संसारनी आवी स्थितिने धिक्कार हो. ‘हे भव्य जीवो! भोगोमां
आसक्तिथी जीवनी आवी दशा थाय छे, तो पछी दुःखकारी एवा ए भोगोथी शुं
प्रयोजन छे? तेने छोडीने जिनेन्द्रदेवना वीतरागधर्ममां ज प्रीति करो.
वज्रजंघ अने श्रीमती मरीने क््यां ऊपज्या–ते हवे कहे छे.
(४)
ऋषभदेवनो सातमो पूर्वभव: भोगभूमिमां सम्यक्त्वप्राप्ति:
प्रिय पाठक! हवे आपणी कथा एक बहु ज सुंदर रळियामणा क्षेत्रमां जाय छे...के
जे क्षेत्र ऋषभदेव भगवानना सम्यक्त्वनी जन्मभूमि छे. ऋषभदेवनो जीव वज्रजंघनो
अवतार पूरो करीने अहीं अवतरे ते पहेलां आ क्षेत्रनो थोडोक परिचय करी लईए.
आ जंबुद्वीपनी वच्चे मेरूपर्वत छे, तेनी उत्तर तरफ उत्तरकुरु नामनी भोगभूमि
छे; ते भोगभूमि पोतानी अतिशय शोभाद्वारा जाणे के स्वर्गनी शोभानी मश्करी करे छे.
त्यां भोजन, वस्त्र, आभूषण, दीपक, वाजिंत्र वगेरे देनार कल्पवृक्षो छे, ते रत्नमय
कल्पवृक्षो पोतानी प्रभावडे चारे बाजु प्रकाश फेलावी रह्यां छे. आ वृक्षो अनादिनिधन
छे, आ उपरोक्त फळ देवानो तेमनो स्वभाव ज छे. जेम आजकालना सामान्य वृक्षो
समय पर अनेकविध फळ आपे छे तेम ते कल्पवृक्षो पण दानना फळमां जीवोने अनेक
प्रकारे फळ आपे छे. त्यांनी भूमि रत्नोनी बनेली छे. पूर्वभवे दान देनारा जीवो ज
अहीं उत्पन्न थाय छे. अहींना जीवो चक्रवर्ती करतां पण वधारे सुखी छे.
आपणा कथानायक वज्रजंघ अने श्रीमती ए बंने मरण पामीने पात्रदानना
प्रभावथी आवी पुण्यभूमिमां अवतर्या; वज्रजंघनी साथे जेमणे आहारदाननुं
अनुमोदन कर्युं हतुं एवो नोळियो, सिंह, वांदरो अने भूंड–ए चारे जीवो पण
आहारदाननी अनुमोदनाना प्रभावथी दिव्य मनुष्यशरीर पामीने अहीं ज उपज्या
अने भद्रपरिणामी आर्य थया. मतिवरमंत्री, आनंदपुरोहित, धनमित्र शेठ तथा
अकंपनसेनापति ए चारेय जीवो वज्रजंघ–श्रीमतीना मृत्युथी वैराग्य पामीने दीक्षित
थया अने रत्नत्रयनी आराधना करीने स्वर्गलोकमां पहेली गै्रवेयकमां अहमीन्द्र थया.
(ऋषभदेव भगवानना जीवने तेमज साथेना पांचे जीवोने, भोगभूमिमां
सम्यक्त्वप्राप्तिनो जे अत्यंतप्रिय मंगलप्रसंग सोनगढजिनमंदिरमां दर्शाववामां आव्यो
छे, अने जे मुमुक्षुओने सम्यक्त्वनी प्रेरणा जगाडे छे–ते प्रसंगनुं रोमांचकारी वर्णन
हवेना लेखांकमां आवशे.)