Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९२ आत्मधर्म : २५ :
ए..........लो
आत्मानुं परथी भिन्न एकत्वस्वरूप बतावीने, वैराग्यरसना
सींचनपूर्वक चैतन्यनी आराधनानी प्रेरणा आपतां सन्तो कहे छे
के: हे जीव! चारगतिना भवभ्रमणमां, के मोक्षनी आराधनामां तुं
एकलो ज छो, बीजुं कोई तारुं साथीदार नथी; आवुं एकत्वस्वरूप
जाणीने तुं एकलो तारा परमतत्त्वमां ज स्थित रहे.
नियमसार गाथा १००मां एकत्वभावना वर्णवतां आचार्यदेव कहे छे के–
जीव एकलो ज मरे, स्वयं जीव एकलो जन्मे अरे!
जीव एकनुं नीपजे मरण, जीव एकलो सिद्धि लहे.
अनादि अनंत एकलो आत्मा अन्य कोईनी सहाय वगर निःसहायपणे
संसाररूप के मोक्षरूप पोते परिणमी रह्यो छे. संसारमां दरेक जीवने आयुष्यनी स्थिति
प्रत्येक समये ओछी थाय छे एटले के आयुष्यनी हानिरूप मरण दरेक समये थई रह्युं
छे, आयुष्यना रजकण क्षणेक्षणे दोडता जाय छे तेने ईन्द्रो पण रोकी शकता नथी. ईन्द्रोनुं
आयुष्य पण प्रत्येक समये क्षय पामतुं ज जाय छे. आयुष पूरुं थतां एक भवमांथी
मरीने बीजा भवमां जतां जीवने शुं कोई रोकी शके छे? ना; असहायपणे संसारमां ते
जन्म–मरण करे छे. ने स्वभावनी साधनावडे ते मोक्षने साधवा मांगे तो ते पण परनी
सहाय वगर पोते एकलो ज साधी शके छे. संसारमां रखडवामां के सिद्धिने साधवामां
जीव एकलो ज छे.
जीव रात्रे सूए ने सवारमां जुओ तो फू.....! रात्रे सूतो ते सवारे उठशे ज–तेनी
पण क्षणभंगुर जीवनमां खातरी नथी. मोटो शहेनशाह रात्रे सूतो ने सवारे मरण
पाम्यो! रात्रे क््यारे मरण पाम्यो तेनी पण लोकोने खबर न पडी. अने कदाच हजारो
लाखो सेवको ने मोटा मोटा वैद–दाक्तरो सामे उभा होय तोपण जीवने मरणथी
बचाववा कोई समर्थ नथी. माटे आवुं असहायपणुं जाणीने हे जीव! तुं तारा एकत्व
स्वभावने परथी पृथक् देख. बापु! तारा चिदानंदघरने तुं जो तो खरो....तेना अपार
वैभवने देखतां तुं एकलो सिद्धिने पामीश; तेमां कोई बीजानी सहायनी जरूर तने नहि
पडे. भगवान! असह्य अने क्षणभंगुर एवा आ संसारना भावथी विरक्त थईने
एकलो तुं तारा सिद्धपदने साध.