: २६ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९२
आयुष्यना क्षयरूप मरण तो जरूर थवानुं ज छे. जो के ज्ञानानंदस्वभावथी तो
जीव अनादिअनंत छे, तेनो कदी नाश थतो नथी; आवा अनादिअनंत ज्ञानानंदस्वभावने
जाणे तो सादि–अनंत एवा सिद्धपदने साधे, के ज्यां कदी मरण के जन्म नथी. अरे, आवा
अशरीरी ज्ञानानंदस्वरूपी आत्माने संसारमां शरीर धारण करीने भवभवमां भटकवुं पडे
ते तो शरम छे!–तेनाथी छूटीने अशरीरी थवानी आ वात छे.
जे जाणे निजात्मने, अशुची देहथी भिन्न;
शरमजनक जन्मो टळे, धरे न देह नवीन.
ब्रह्मदत्तचक्रवर्तीनुं ७०० वर्षनुं आयुष्य हतुं, तेमांय चक्रवर्तीपदनो काळ तो
तेनाथी थोडो; ते मरीने सातमी नरकमां ३३ सागरोपमना आयुष्यथी ऊपज्यो. एटले
चक्रवर्तीपदनी एकेक सेकंडनी सामे असंख्याता वर्षोनुं नरकनुं घोर दुःख ते पाम्यो. अहीं
चक्रवर्तीपणामांय कोई तेनुं सहायक न हतुं, पोते एकलाए ज तेना भोगवटानो भाव
कर्यो ने मरीने पोते एकलो ज नरकमां गयो, त्यां अनंता दुःखने ते एकलो ज भोगवे
छे; ने स्वभावने साधीने मोक्ष पामशे त्यारे पण ते एकलो ज मोक्ष पामशे.
भाई, संतो तने तारुं एकत्व बतावीने स्वाश्रित मोक्षमार्ग साधवानुं कहे छे. तुं
एकलो छो..... जगतमां तारे कोनी सामे जोईने अटकवुं छे! पराश्रये तें अनंत जन्म–
मरण कर्या; अरे, हवे तो एनो छेडो छोड! हवे तो स्वाश्रय करीने सिद्धिना पंथे चड!
श्री गुरु तने तारुं स्वाश्रित चैतन्यपद बतावीने तेनो आश्रय करावे छे, तो श्री
गुरुनाप्रसादथी तुं स्वात्माश्रित परिणाम वडे तारा सिद्धपदने साध! तारा मोक्षने
साधवामां पण तुं एकलो ज छो.....तारा सिद्धपदने साधवा माटे तुं बहारथी पाछो
हटीने अंतरमां जा..... एम संतोनो वारंवार उपदेश छे.
रे जीव! सिद्धपदने साधवानो आवो अवसर मळ्यो छे, हवे तुं चुकीश
नहि....सिद्धपदना भंडार तारामां ज भर्या छे, तेने अंतरद्रष्टिथी खोल एटली ज वार
छे. तारा सिद्धपदने माटे कोई बीजानी सामे तारे जोवानुं नथी, कोई बीजानी तारे
ओशीयाळ के सहाय नथी, ने कोई बीजो तने रोकी शके तेम नथी. तुं अंतुर्मुख थईने
निजात्मानो आश्रय ले. तीर्थंमां के सिद्धक्षेत्रमां जईने पण निजात्माना आश्रये ज सिद्धि
साधी शकाय छे; निजात्माना आश्रय वगर क्यांय पण सिद्धि पामी शकाती नथी.
पोताना परिणामरूप कर्मने आत्मा ज स्वयं करे छे, ने पोते ज तेना फळने
भोगवे छे; कोई बीजो तेना परिणामने करावतो नथी के कोई बीजो तेना फळने
भोगवतो नथी.–आवो एकत्व स्वभाव अनादिअनंत छे. पोताना परिणाममां
संसारना के मोक्षना भाव करीने तेना फळने जीव एकलो ज भोगवे छे. स्त्री–पुत्रादि
माटे जे पाप कर्यां तेनुं फळ भोगववा कांई तेओ भेगां नथी आवता. तारा परिणामनुं
फळ तारे ज भोगववानुं