Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९२
एक मुमुक्षु: ‘नवभारत टाईम्स’ तथा ‘मुंबई समाचार’ मांथी सुधारोवधारो
करीने आपे लखेल लखाण मोकल्युं....आपना लखाणमां तत्त्वना प्रेम करतां लेखक
बनवानो शोख वधु देखाय छे. आपनुं लखाण मेळवाळुं नथी; तेमज पत्रमां पोतानुं
नामठाम जणाववुं जोईए. आटला सुचन पछी तमारा लखाण उपरथी नवी चार
लाईन अहीं आपुं छुं–
धन जावे कछू न जाय,
तन जावे कछू न जाय;
जो आत्मज्ञाननो अवसर जाय,
तो सबही जीवन निष्फळ जाय.
दिल्हीथी सभ्य नं. 117 दीपक जैन लखे छे के–
वैशाख सुद बीजे आपणा पू. गुरुदेवनो जन्म दिवस अमे सौए आनंदथी
उजव्यो हतो. लालमंदिरमां सामूहिक पूजा अने स्वाध्यायनो कार्यक्रम हतो. लालमंदिरमां
त्रण दिवस सुधी रोशनी करी हती, ने जन्मवधाईमां वाजां वगाडया हता. पाटनगरना
लोको जोई रह्या के आ शुं! त्यां तो जन्म दिवसनुं बोर्ड जोई सहु आनंद अने आश्चर्य
अनुभवता हता.
मोरबीथी श्री केशुभाई लखे छे के जेठ मासना अंकमां मूडबिद्रिनी जिनवाणीना
दर्शनथी, तथा मुनिजीवननी मधुरी उर्मिओ अने षट्खंडागम–परिचय वांचीने घणो
प्रमोद थयो. ऋषभदेव भगवानना पूर्वभवोनी कथा वांचतां तो अषाढना ‘आत्मधर्म’
नी मेघनी माफक वाट जोई रह्या छीए” –भाईश्री! तमारी लागणी माटे आभार!
जेनी तमे राह जोता हता ते तमारा हाथमां ज छे; –हवे श्रावणनी राह जोशोने?
आत्मा धर्मने पाक्षिक करवा संबंधी आपनी जेम घणा जिज्ञासुओनी भावना छे, ने
माननीय प्रमुखश्रीने ते वस्तु ख्यालमां छे.
अमदावादथी उमेशभाई लखे छे के बालविभागनुं अभिनंदनकार्ड तथा फोटो
मळ्‌या; मारा जन्मदिवसे आवी सारी भेट जोई सौ आनंद पाम्या. जन्मदिवस निमित्ते
में बे प्रार्थना वधु करी. ‘बे सखी’ अने ‘दर्शनकथा’ ए पुस्तको मारी बाने खूब गम्या
छे ने वारेघडीये ते कथा वांचे छे. वांचती वखते तेमनी आंखमांथी अवश्य आंसु टपके
छे, ने दुःखो भूलाई जाय छे, ने शांति थाय छे. तेमने आत्मधर्म खुब ज गमे छे.