बनवानो शोख वधु देखाय छे. आपनुं लखाण मेळवाळुं नथी; तेमज पत्रमां पोतानुं
नामठाम जणाववुं जोईए. आटला सुचन पछी तमारा लखाण उपरथी नवी चार
लाईन अहीं आपुं छुं–
तन जावे कछू न जाय;
जो आत्मज्ञाननो अवसर जाय,
तो सबही जीवन निष्फळ जाय.
त्रण दिवस सुधी रोशनी करी हती, ने जन्मवधाईमां वाजां वगाडया हता. पाटनगरना
लोको जोई रह्या के आ शुं! त्यां तो जन्म दिवसनुं बोर्ड जोई सहु आनंद अने आश्चर्य
अनुभवता हता.
प्रमोद थयो. ऋषभदेव भगवानना पूर्वभवोनी कथा वांचतां तो अषाढना ‘आत्मधर्म’
नी मेघनी माफक वाट जोई रह्या छीए” –भाईश्री! तमारी लागणी माटे आभार!
जेनी तमे राह जोता हता ते तमारा हाथमां ज छे; –हवे श्रावणनी राह जोशोने?
आत्मा धर्मने पाक्षिक करवा संबंधी आपनी जेम घणा जिज्ञासुओनी भावना छे, ने
माननीय प्रमुखश्रीने ते वस्तु ख्यालमां छे.
में बे प्रार्थना वधु करी. ‘बे सखी’ अने ‘दर्शनकथा’ ए पुस्तको मारी बाने खूब गम्या
छे ने वारेघडीये ते कथा वांचे छे. वांचती वखते तेमनी आंखमांथी अवश्य आंसु टपके
छे, ने दुःखो भूलाई जाय छे, ने शांति थाय छे. तेमने आत्मधर्म खुब ज गमे छे.