Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९२ आत्मधर्म : ३९ :
दाहोदथी शैलेष (407) लखे छे के जन्मदिवसे तमारा तथा बालविभागना
वहाला बंधुओना अभिनंदन मळतां आनंद थयो जन्मदिवसे तो एम थाय के
जीवनमांथी एक वर्ष ओछुं थयुं; पण आ वखतना जन्मदिवसे मने धर्मनो उत्साह वध्यो.
शाळानुं भणतर तो भणता, पण धर्मना भणतरमां तो आ ज वषेेर् में प्रगती करी; तेथी
आ जन्मदिवस आनंदनो गयो छे. बालविभागना सभ्य थवा माटे हुं बीजाने भलामण
करुं छुं, धर्म प्रत्ये बाळकोने रस वधे तेवुं मासीक आपणुं आत्मधर्म ज छे.
राजकोटथी दीपाबेन (251) लखे छे के बालविभाग तरफथी मारा जन्मदिवसे
अभिनंदननुं कार्ड मळ्‌युं ते वांची खूब आनंद थयो. साथे गुरुदेवनो फोटो मळ्‌यो. ते
जोतां खुब आनंद आवे छे. हुं नानी छुं तेथी मोटा देरासर जती नथी, पण घीयाना घेर
देरासर छे त्यां जाउं छुं.
ममताबेन (407) खंडवा थी पूछे छे–पात्रता लाववा माटे शुं करवुं?
ममताबेन, संसारनी ममतानो त्याग करीने, आत्महित साधवानी उग्र
जिज्ञासा प्रगट करवी ते पात्रता छे; ज्यां संसारनी ममता न होय त्यां संसारसंबंधी
भावोनी तीव्रता पण क््यांथी होय? ज्ञानीजनोने ओळखी, आत्महित साधवानी
भावनाथी तेमना सत्संगमां रहेतां पात्रतानी पुष्टि थाय छे. वळी तमे लखो छो के
‘ज्ञानीओंके चरणोंमें रहनेकी उत्सुक हूं। –तो बहेन, आपकी इस भावनामें हमारी
अनुमोदना है।
विजयकुमार जैन (414) भावनगर–तमे रोज राते पहेलां पंचपरमेष्ठीनुं
स्मरण करो छो, तथा ‘दर्शनकथा’ वांच्या पछी रोज सवारे जिनेन्द्र भगवानना दर्शन
कर्या पछी ज बीजुं काम करवानो निश्चय कर्यो छे, –ते बदल धन्यवाद! आत्मधर्ममां
बालविभाग खुल्या पछी तमे धर्ममां वधु रस लई रह्या छो–ते जाणीने आनंद.
एक हजार बाळकोमां कोमळ हैयानी जिज्ञासाने खीलवतो आ विभाग खुब ज
विकसी रह्यो छे. आ विभाग जिज्ञासुओमां एटलो प्रिय थयेल छे के तेने माटे दर
महिने बसो जेटला पत्रो आवे छे. तेमांथी उपयोगी पत्रो अने प्रश्नो चूंटीचूंटीने लईए
छीए, छतां पण आत्मधर्ममां तेनो पूरो समावेश थई शकतो नथी. आ वखते हजी
केटलाय बाळकोने तथा बीजा जिज्ञासुओनी वात छापवानी बाकी राखवी पडी छे, जे
हवे पछी आपीशुं. बाळको, तमारा हृदयमां तत्त्व समजवानी जिज्ञासा जागे तेने अमे
आवकारीए छीए.