: २ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९२
योगसारनुं अपूर्व मंगळ
(सोनगढमां जेठ वद त्रीजे भाईश्री चीमनलाल ठाकरशी मोदीना नवा मकानना
वास्तुप्रसंगे योगसार उपर प्रवचनोनो प्रारंभ थयो.....तेना अपूर्व मांगळिकनुं
भावभीनुं प्रवचन)
उपयोगने शुद्धात्मामां जोडवो तेनुं नाम
योग; एवा शुद्ध उपयोगरूप ध्यानवडे जेओ सिद्धपद
पाम्या तेमनी प्रतीत करीने पोते पण ते मार्गे जाय
छे,–ए सिद्धपदना मांगळिकनो अपूर्व भाव छे.
योगीन्द्रदेव लगभग १४०० वर्ष पहेलां आ भरतक्षेत्रमां विचरता महान
दिगंबर सन्त हता. तेमणे परमात्मप्रकाश जेवुं महा शास्त्र रच्युं छे. आ योगसार पण
तेमणे रच्युं छे. तेना प्रारंभमां मंगलरूपे सिद्धने नमस्कार करे छे–
णिम्मल झाण पीरठ्ठिया कम्मकलंक डहेबि।
अप्पा लद्धउ जेण परु ते परमप्प णवेवि।।१।।
निर्मळ ध्यानारूढ थई, कर्मकलंक खपाय;
थया सिद्ध परमातमा, वंदुं ते जिनराय.
आत्माना निर्मळध्यानमां स्थिर थईने जेमणे कर्मकलंकने नष्ट कर्या अने परम
आत्मस्वरूपने प्राप्त कर्युं एवा सिद्ध परमात्माने नमस्कार करीए छीए. आत्माना
ध्येयरूप सिद्धपद, ते सिद्ध भगवान जेवुं आत्मस्वरूप, तेने प्रतीतमां लईने ध्यानवडे
तेमां उपयोगने जोडवो–तेनुं नाम योग छे; ने तेनो आ उपदेश छे. आवा योगवडे ज
कर्मकलंकनो नाश करीने सिद्धपद पमाय छे.
बधा आत्मा स्वभावसत्ताथी शुद्ध सिद्ध भगवान जेवा छे. आवा शुद्ध
आत्मस्वरूपमां विकारनी सत्ता नथी. आवा शुद्धस्वरूपने ध्येयमां लईने ध्याववुं ते ज
कर्मना नाशनो ने सिद्ध थवानो उपाय छे. आवा उपाय वडे सिद्धपदने साधतां साधतां
योगीन्दु मुनिराज आ शास्त्र रचे छे, ने मंगलाचरणमां सिद्धने नमस्कार करे छे.