तारुं सुख तारा अस्तित्वमां छे; बीजाना अस्तित्वमां तारुं सुख नथी. ज्यां पोतानुं
सुख भर्युं होय त्यां जुए तो सुखनो अनुभव थाय. सर्वज्ञ सिद्धपरमात्माने देहातीत
पूर्ण आनंद प्रगट थयो छे, ने बधा आत्माओ एवा ज पूर्णआनंदथी भरपूर छे एम ते
शुद्धआत्मानी प्रतीत भेगी समाई जाय छे.
पोताने शुद्धात्माना ध्याननी रुचि ने तालावेली लागी छे. संसारथी भयभीत थईने
मोक्षने साधवानी भावनावाळो जीव पोताना उपयोगने शुद्धआत्मस्वरूपमां जोडे छे.
रीते कर्मकलंकने दग्ध करीने सिद्धि पाम्या एम प्रतीत करीने पोते पण ते मार्गे जाय छे
एटले शुद्धात्मा तरफ उपयोगने जोडे छे.–आनुं नाम योग छे, ते मंगळ छे, ने ते मोक्षनुं
कारण छे.
शुद्ध परमस्वभावनुं ध्यान करी करीने परमात्मा थया. एवा परमात्मा जेवो ज परम
स्वभाव मारामां छे एम लक्षमां लईने हुं ते सिद्धपरमात्माने नमस्कार करुं छुं.
सिद्धोने हुं मारा तेमज श्रोताओनां आत्मामां बोलावुं छुं, आदर करुं छुं, श्रद्धामां–
ज्ञानमां लऊं छुं. अनंता सिद्धोनो जे समूह सिद्धनगरीमां वसे छे, तेमने हुं मारा
ज्ञानमां स्थापुं छुं. ऊर्ध्वलोकनी सिद्धनगरीमां बिराजमान सिद्धोने प्रतितना बळे मारा
सिद्धभगवंतोनो सत्कार करुं छुं ने ए सिवाय बीजा परभावोनो आदर छोडी दऊं छुं;
एटले के मारी परिणतिने रागथी