Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ७ :
होय छे. भले चारित्रदशारूप विशेष मोक्षमार्ग हजी एने नथी पण सम्यग्दर्शन–ज्ञान
तथा स्वरूपाचरणरूप थोडोक मोक्षमार्ग तो तेने वर्ते छे. ने गृहस्थपणामांय ध्यानना
प्रयोगवडे कोईवार रागथी उपयोगने जुदो पाडीने निर्विकल्प आनंदने अनुभवे छे.
मोक्षमार्गनो मोटो भाग मुनिवरो पासे छे, एटले के चारित्रदशा सहित घणो
मोक्षमार्ग मुनिने प्रगट्यो छे, ने गृहस्थधर्मात्मा पासे मोक्षमार्गनो नानो भाग छे.
भले नानो भाग, पण तेनी जात तो मुनिराजना मोक्षमार्ग जेवी ज छे. श्रावकधर्मीने
पण मोक्षमार्गनो अंश होय छे.
कोई कहे के मोक्षमार्ग मुनिने ज होय ने गृहस्थ श्रावकने मोक्षमार्ग जरापण न
होय,–तो तेने खरेखर मोक्षमार्गना स्वरूपनी खबर नथी ने श्रावकधर्मात्मानी दशानी
पण तेने खबर नथी. अव्रती गृहस्थने पण मोक्षमार्गनो अंश वर्ते छे.–ते पण क््यारेक
उपयोगने अंतरमां एकाग्र करीने निर्विकल्प स्वानुभवना महा आनंदने वेदी ल्ये छे.
मुनिने तो चैतन्यस्वरूपमां घणी लीनता छे. मुनि मोटा मोक्षमार्गी छे ने गृहस्थी–
सम्यग्द्रष्टि नानो मोक्षमार्गी छे.–पण मोक्षमार्ग तो बंनेने छे; बंने मोक्षना साधक छे.
पोताना शुद्ध आत्मानी परम किंमत भासे तो तेमां उपादेयबुद्धि थाय, तेनी
सन्मुख परिणति थाय, ने मोक्षमार्ग प्रगटे पण ते माटे पहेलां ज्ञानीना सत्समागमे
तेनी तीव्र जिज्ञासा जागवी जोईए. एने रागनो रस ऊडी जाय ने शुद्धात्मानो रस
घणो वधी जाय.
पछी अंतर्मुख परिणाममां शुद्धात्माने साक्षात् उपादेय करतां परम आनंदसहित
मोक्षमार्ग खूली जाय छे. आ मोक्षमार्गना दरवाजा खोलवानी रीत सन्तोए मने
बतावी; तेमने नमस्कार हो.
सं तो नी वा णी
टूं की ने टच
जीव जुदो, पुद्गल जुदुं,
ए ज तत्त्वनो सार;
बीजुं वर्णन जेटलुं,
ते आनो विस्तार.