: ८ : आत्मधर्म : प्र. श्रावण : २४९२
मुनि जेवुं ज्ञानीनुं जीवन छे
एना अंतरमां भगवान वसे छे
मुनिओना मनमां कोण वसे छे? मुनिओना मनमां, एटले के मुनिओना ज्ञानमां, आनंदथी
भरेलो आखो आत्मा वसे छे.
मुनिओना मनमां भगवान वसे छे, राग एमना मनमां वसतो नथी, देहनी क्रिया एमना
ज्ञानमां वसती नथी.
तारे मुनिजीवन जेवुं जीवन प्राप्त करवुं होय तो तारा ज्ञानमां शुद्धआत्माने वसाव ने रागादिने
ज्ञानमांथी बहार काढी नांख.
मुनिओना ज्ञानमां वसेलो आ सुखसमुद्र भगवान आत्मा ते विषयसुखोमां रत जीवोने सर्वथा
दुर्लभ छे. जेना मनमां विषयो वसे तेना मनमां परमात्मानो वास क््यांथी होय?
मुनिवरोनी जेम साधक धर्मात्माए पण अंतरमां पोताना शुद्धात्माने वसाव्यो छे, ने रागादि
परभावो तेना ज्ञानथी भिन्न रही गया छे. घरमां रहेला धर्मात्माना मनमां (रुचिमां–ज्ञानमां) घर नथी
वस्युं पण चैतन्य भगवान वस्यो छे.
धर्मी संतोने तो जाणे भगवानना तेडां आव्या छे, भगवान एने तेडावे छे... एना हृदयमां
भगवानने वसावीने ए सिद्धपद तरफ चाल्या जाय छे.
आवुं जीवन ए धर्मीनुं जीवन छे. बाकी जेना हृदयमां विषयकषायो वसे छे, जेना हृदयमां रागनी
ने पुण्यनी अभिलाषा वसे छे तेना हृदयमां भगवान शुद्ध आत्मा वस्यो नथी, एटले के ते भगवानना
मार्गमां आव्यो नथी. विषयकषायोरूपी परभावमां लिप्त एनुं जीवन ए साचुं जीवन नथी.
ज्यां हृदयमां श्रद्धा–ज्ञानने चोकखां करीने परम आत्मतत्त्वने वसाव्युं त्यां जीवन आखुं पलटी
जाय छे; सुखनो समुद्र अंदरथी ऊछळवा लागे छे. आवुं जीवन धर्मी जीवे छे. ते ज खरुं जीवन छे.
तारुं जीवन खरुं तारुं जीवन!
जीवी जाणे छे ज्ञानी साचुं जीवन:
(नियमसार–प्रवचनमांथी)
नकामुं नाक
स्पर्शनवडे जिनचरणोनी स्पर्शना थाय छे.
रसनावडे जिनेन्द्रगुणोनी स्तवना थाय छे.
नेत्रवडे जिनेन्द्रदेवनां दर्शन थाय छे.
श्रोत्रवडे जिनेन्द्रगुणोनुं श्रवण थाय छे.
मनवडे अर्हन्तगुणोनुं मनन थाय छे,
एक नाक नकामुं छे.