Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ९ :
[आत्मधर्मनो चालु विभाग: लेखांक: २०]
(२६१) आत्माने चिन्तव हे आत्मार्थी! तारा आनंदमय आत्माने साधवा माटे
बीजी बधी चिन्ता छोडीने आत्माने चिंतव; जगतनी चिंताओमां अटकीश तो आत्माने
क््यांथी साधीश? माटे बधेथी निश्चिंत थईने शान्त अने निश्चल परिणामे आत्माने
चिन्तव. एना एकना ज चिन्तनवडे अतीव आनंदपूर्वक तुं तारा आत्माने साधीश.
(२६२) आत्मार्थीनी प्रवृत्ति आत्मार्थी जीव निष्प्रयोजन प्रवृत्तिमां पडे नहि. ने
जेमां पोताना आत्मानुं हित पोषाय एवी सत्संग प्रवृत्तिमां उत्साहथी प्रवर्ते.
(२६३) हे जीव! तारी शक्तिने वेडफी न नांख जगतमां कांई अनुकूळ–
प्रतिकूळ प्रसंग बनतां हे जीव! तुं चिन्ताना सागरमां न पड. पण जेमां जगतसंबंधी
प्रसंगोनो प्रवेश नथी ने जे आनंदमय छे एवा तारा ज्ञान–समुद्रमां तुं मग्न रहे, तेनी
चिन्तामां मस्त रहे. जगतना कोलाहलनी व्यर्थ चिन्तामां तारी शक्तिने वेडफ नहि; सर्व
शक्तिने निजस्वरूपना चिन्तनमां जोड.
(२६४) उपयोगने अंदर जोड! तारुं ज्ञाननुं ने आनंदनुं धाम क््यां छे? तारुं
स्व–स्थान जे असंख्यप्रदेशी परमआत्मा, ते तारुं ईष्ट धाम छे, तेमां ज तारा ज्ञान ने
आनंद भरेला छे. माटे बीजे बधेथी ईन्द्रिय–मन तरफनी वृत्तिओने रोकीने, उपयोगने
अंदरमां जोड.–आ ज तारा ईष्टनो उपदेश छे. पांच ईन्द्रियना बाह्य विषयोमां–
अशुभमां के शुभमां क््यांय तारुं ईष्ट नथी. माटे बहारनी वृत्तिनो उत्साह छोडीने
अंतरना ईष्टस्वभाव तरफ उत्साह कर,–के ज्यांथी तने आनंद मळे.
(२६प) दूर न देख तारा परमेश्वरने तुं दूर न देख,
तने ज तुं प्रभु तरीके स्थाप.
तारी परमेश्वरता तारामां ज छे,
रागमां–विकल्पमां–बहारमां प्रभुता नथी;
आवी प्रतीतिनुं जोर स्वसंवेदन करे छे.