Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: अधिक श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ११ :
वीतरागी सन्तो कहे छे – हे मोक्षार्थी!
मोक्षने माटे तारा शुद्ध – बुद्ध आत्माने ध्याव
[योगसार–प्रवचनोमांथी]
संसार तरफना भावोथी जे थाकेलो छे ने आत्माना परम
आनंदने अनुभववा आव्यो छे–एवा मोक्षार्थी जीवे शुं करवुं! ते
अहीं बताव्युं छे; अने सरल शैलिथी मार्ग दर्शावीने शुद्धात्माना
ध्यानमां मुमुक्षुने प्रोत्साहित कर्यो छे.
आत्माना पूर्ण आनंदना लाभने जो तुं चाहतो हो तो हे जीव! अनुदिन तुं
तारा शुद्ध आत्माने भाव, एम कहे छे–
सुद्ध सचेयणु बुद्धु जिणु केवल णाणसहाउ ।
सो अप्पा अणुदिणु मुणहु जइ चाहहु शिवलाहु ।।२६।।
शुद्ध सचेतन बुध जिन केवळ ज्ञानस्वभाव,
ते आत्मा जाणो सदा जो चाहो शिवलाभ. (२६)
हे मोक्षना अभिलाषी! तारे प्रतिदिन करवा जेवुं काम आ छे के शुद्ध
चैतन्यस्वरूपे पूर्ण आनंदना सागर एवा निजात्माने जाणीने तेने अनुभवमां ले.
अंतरमां वारंवार उपयोगनो प्रयोग करीने तुं शुद्ध आत्मानी सन्मुख था ने
ज्ञानचेतनाने आनंदसहित वेदनमां ले. आ सिवाय बीजा भावोनी भावना न कर.
तुं तो सचेतन जागृतस्वरूप छो; तेमां रागने करवानुं के वेदवानुं न आवे.
रागने करवुं ने वेदवुं ए तो संसार छे; अहीं तो संसारथी जे भयभीत छे, संसार
तरफना भावोथी जे थाकेलो छे, ने आत्माना परम आनंदने अनुभववा आव्यो छे–
एवा जीवनी वात छे. एवा जीवे शुं करवुं? के आत्माने ध्याववो.
–केवा आत्माने ध्याववो?