Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : अधिक श्रावण : २४९२
–शुद्ध एटले परभावोथी रहित, ने ज्ञानदर्शन स्वभावथी पूर्ण–एवा आत्माने
ध्याववो; सचेतनपणाथी पूरो एटले ज्ञानदर्शनथी पूरो, ने अचेतनपणानी रहित एटले
के रागादि परभावोथी रहित–एवा शुद्धसचेतन–पूर्ण आत्माने तुं ध्यावजे.
आत्मा ‘बुद्ध’ छे एटले स्वरूपने बोधे (जाणे) ते साचा बुद्ध; सत्य बुद्ध तो
ज्ञानस्वरूप आत्मा छे. बोधन करे ते बुद्ध कहेवाय. आ भगवान आत्मा बुद्ध छे, ते
बोधस्वरूप छे, ज्ञानस्वरूप छे, रागने करे के वेदे एवुं तेनुं स्वरूप नथी. आवा शुद्ध
बुद्धआत्मस्वरूपने अंतर्मुख थईने हे मोक्षार्थी! तुं जाण. अंतरमां ठरेला स्थिर तत्त्वने
ठरीने तुं जाण; विकल्पना उत्थान वडे ए तत्त्व जणाय तेवुं नथी. माटे बोधस्वरूप
थईने बुद्धतत्त्वने तुं जाण. ज्ञानस्वरूप आत्मा ज्ञानवडे जणाय, रागवडे न जणाय.
राग ते बुद्धतत्त्वनो अंश नहि; बुद्धस्वरूप आत्मामां रागना विकल्पने अवकाश क््यां
छे? ज्ञानीए अंतरमां आवा तत्त्वने अनुभव्युं. में आ तत्त्व जाण्युं ते हुं बीजाने कहुं
एवी वृत्तिना उत्थानने शुद्ध–बुद्धतत्त्वमां स्थान नथी; नहितर तो सिद्धनेय एवी वृत्तिनुं
उत्थान जागवुं जोईए.
अधिकता रागवडे वाणीवडे के बीजा जाणपणावडे नथी. संसारनो विजय करनार–
परभावोने तोडनार एवो जिन आत्मा छे; तेने निर्विकल्पध्यानमां ध्येय करवो,
स्वसन्मुखज्ञानमां ज्ञेय करवो–ते शिवमार्ग छे, ते परम आनंदनो पंथ छे.
बीजानुं करवानी बाह्यवृत्तिमां तो भगवान आत्मा नथी, अंतरमां विकल्पना
उत्थानमां पण आत्मा नथी; अपूर्णता ते पण खरेखर आत्मा नहि. आत्मा तो पूर्ण
सचेतन, एकलो ज्ञानस्वभावी बुद्ध–शुद्ध छे, तेमां अपूर्णता केवी? ने अशुद्धता केवी?
आवा आत्माने लक्षगत करीने हे जीव! हंमेशां तुं एनी प्रीति कर, अंतर्मुख थईने एनुं
मनन कर; वच्चे बीजा कोईनी प्रीति एक क्षण पण न आववा दे.–आ ज मोक्षनो हेतु
छे, ने बीजी बधी विकल्पनी वातुं छे. मोक्षमार्ग अंतर्मुखधारामां समाय छे. विकल्पनी
धारा वच्चे होय तेने अनुमोदन करीश मा! ए विकल्पने मोक्षपंथमां बाधक समजजे,
तेने साधक समजीश मा.
शुद्ध–ज्ञानस्वरूप आत्मा, के जेमां अंतर्मुख थतां विभावो जीताई जाय–एवो
जिन, परमार्थे तुं ज छो, तारा आवा स्वरूपने जाणीने पुनःपुन: तेनी भावना कर. –
एम करवाथी तने मोक्षना परमसुखनो अनुभव थशे. माटे आ ज मोक्षार्थीए निरंतर
करवायोग्य कर्तव्य छे; केम के–