Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 16 of 58

background image
: प्र. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : १३ :
शुद्ध आत्मानी भावनावडे मोक्षमार्ग थाय छे. अने परनी भावनाथी संसार
थाय छे.–माटे हे जीव! तने ज्यां रुचे त्यां तुं जा! मोक्षने चाहतो हो तो शुद्धआत्मानी
भावना कर.–अमे तो मार्ग बताव्यो पण ते मार्ग जवुं ए तारा हाथनी वात छे. बे
मारग छे–एक मोक्षनो मार्ग, बीजो संसारनो मार्ग; मोक्षनो मार्ग अंतर्मुखस्वभावनी
भावनामां छे; एना सिवाय जेटली बाह्यवृत्ति ने विकल्पो ते संसारनो मार्ग छे. हवे
तने जे मार्ग रुचे ते मार्गे तुं जा. वाणीमां–शरीरमां के विकल्पमां तारो मोक्षमार्ग नथी.
तारो मोक्षमार्ग तारा शुद्ध–बुद्ध–जिनस्वभावी आत्मामां छे. मोक्षने माटे तारा
स्वभावनी समीप जा. विकल्पोथी दूर था ने शुद्धस्वरूपनी समीप थईने निर्विकल्प
स्वरूपे आत्माने ध्याव.
मोक्षनी जेने भावना होय तेने रागना कोई अंशनी रुचि के भावना न होय;
बीजानुं हित करवा माटे भव करवानी भावना तेने न होय. पराश्रितभाव जेने रुचे छे
तेने संसारनी भावना छे, तेने मोक्षनी खरी अभिलाषा नथी. मोक्षनी जेने साची
अभिलाषा होय तेने बंधभावनी भावना होय नहीं, एने तो दिनरात क्षणेपळे
पोताना चैतन्यस्वभावी शुद्ध–बुद्धआत्मानी ज भावना, तेनो ज प्रेम ने तेमां ज
फरीफरी सन्मुखता वर्ते छे. मोक्षार्थी जीवनुं आ ज कर्तव्य छे–एम फरीफरीने सन्तोनो
उपदेश छे.
सन्तकी पहचान मुझे आनंद देती है।
हे चैतन्यद्रष्टि–धारक सम्यग्द्रष्टि संत! तारी अंर्तद्रष्टि कोई अनेरी छे,
तारी आत्मपरिणतिनी रीत अटपटी छे; ईन्द्रियथी अगोचर एवी तारी
अंतरपरिणतिनी ओळखाण बहारनी द्रष्टिवडे थती नथी, एकली बहारनी
चेष्टाओ वडे तारी अंर्तद्रष्टिना भावो ओळखाता नथी. गृहवासमां वसवा
छतां तारी आत्मस्पर्शी परिणति गृहथी अलिप्त छे. बहारना संयोगमां कदाच
असाताजन्य दुःख देखाय पण तारी अंतरपरिणति तो चैतन्यना सुखरसने
गटगटावी रही छे. तारी परिणतिमां विकारथी जुदी ज एक उपशांत–ज्ञानधारा
सदाय वर्ती रही छे,–जेनां बळे तुं संयोगथी ने विभावोथी सदाय अलिप्त रहे
छे. वाह रे वाह, संत! तारी अंतरनी ए धाराने ओळखतां मारो आत्मा पण
जाणे सर्वे परभावोथी जुदो पडी जाय छे... ने आनंदनी मधुर उर्मिओ जागे
छे.–तारा चरणमां बहु भक्तिथी मारो आत्मा नमी पडे छे.