: १४ : आत्मधर्म : प्र. श्रावण : २४९२
भगवन ऋषभदव
तेमना छेल्ला दश अवतारनी कथा
[महापुराणना आधारे ले. ब्र. हरिलाल जैन: लेखांक चोथो]
आ भरतक्षेत्रमां असंख्य वर्षो पहेलां थयेला आपणा आदि
तीर्थंकर भगवान ऋषभदेवना दशभवोनी आ कथा चाले छे. पूर्वे
दशमा भवे ते जीव महाबलराजा हतो त्यारे स्वयंबुद्धमंत्रीना उपदेशथी
जैनधर्मना संस्कार पाम्यो; पछी ललितांग देव थयो; त्यांथी
वज्रजंघराजाना भवमां श्रीमती सहित आहारदान दीधुं ने अन्य चार
तिर्यंचजीवोए तेनी अनुमोदना करी. आहारदानना प्रतापे ए छए
जीवो भोगभूमिमां अवतर्या छे. अहीं सुधी आपणी कथा पहोंची छे.
हवे आ भोगभूमिमां ए ज स्वयंबुद्धमंत्रीनो जीव मुनिपणे अहीं
आवीने ऋषभदेव वगेरेना जीवोने परम कृपापूर्वक सम्यग्दर्शन पमाडे
छे; लेखकने पुराणोमां सौथी प्रिय एवा आ प्रसंगनुं अहीं आलेखन
छे...जे सम्यक्त्वनी आराधनामां उल्लसित करे छे.
सातमो पूर्वभव: भोगभूमिमां सम्यक्त्वप्राप्ति
भोगभूमिमां आर्य–दंपती तरीके उपजेला वज्रजंघ अने श्रीमती एकवार
कल्पवृक्षनी शोभा नीहाळता बेठा हता; एवामां आकाशमां पसार थई रहेला
सूर्यप्रभदेवनुं विमान देखीने ते बंनेने जातिस्मरण थई गयुं. जातिस्मरण वडे पूर्व भवो
जाणीने तेओ वैराग्यपूर्वक संसारनुं स्वरूप विचारता हता; त्यां तो वज्रजंघना जीवे
आकाशमां दूरथी आवी रहेला बे चारणमुनिओने देख्या. अने ते चारणमुनिवरो पण
तेना उपर अनुग्रह करीने आकाशमार्गथी नीचे ऊतर्या. तेमने सन्मुख आवता देखीने
तुरत ज वज्रजंघनो जीव ऊभो थईने विनयथी तेमनो सत्कार करवा लाग्यो. साचुं ज
छे,–पूर्वजन्मना संस्कार जीवोने हितकार्यमां प्रेरित करे छे, बंने मुनिवरोनी समक्ष
पोतानी स्त्री सहित ऊभेलो वज्रजंघनो जीव एवो शोभतो हतो, के सूर्य अने
प्रतिसूर्यनी समक्ष जेवुं कमलिनीसहित प्रभात शोभे. वज्रजंघना जीवे भक्तिपूर्वक बंने
मुनिवरोना चरणमां अर्घ चडावीने तेमने नमस्कार कर्या; ते वखते तेना नयनोमांथी
हर्षना आंसु नीकळीनीकळीने मुनिराजना चरण उपर पडवा लाग्या, जाणे के नयनोवडे
ते मुनिराजना चरणोनुं प्रक्षालन ज करतो होय! स्त्री सहित प्रणाम करता
आर्यवज्रजंघने आशीर्वाद दईने ते बंने मुनिवरो. योग्यस्थान पर यथाक्रमे बेठा.