Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 58

background image
: १८ : आत्मधर्म : प्र. श्रावण : २४९२
हे आर्य! अरिहंतदेवना वचनअनुसार में आ सम्यग्दर्शननी देशना करी छे ते श्रेयनी
प्राप्ति माटे तारे अवश्य ग्रहण करवायोग्य छे. ए प्रमाणे आर्य–वज्रजंघने प्रतिबोध्या
बाद ते मुनिराज आर्या–श्रीमतीने संबोधीने आ प्रमाणे कहेवा लाग्या:
हे अंबा! हे माता! तुं पण संसारसमुद्रथी पार थवा माटे नौकासमान एवा आ
सम्यग्दर्शनने अति शीघ्रपणे ग्रहण कर. आ स्त्रीपर्यायमां वृथा खेदखीन्न शा माटे थाय
छे? हे माता! तुं विलंब वगर सम्यग्दर्शनने धारण कर. सम्यग्दर्शन थया पछी जीवने
स्त्रीपर्यायमां अवतार थतो नथी, तेमज नीचेनी छ नरकोमां, वैमानीकथी हलका देवोमां,
के बीजी कोई नीच पर्यायोमां ते उत्पन्न थतो नथी. अज्ञानजन्य आ निंद्य स्त्रीपर्यायने
धिक्कार छे के जेमां निर्ग्रंथमुनिधर्मनुं पालन थई शकतुं नथी. हे माता! हवे तुं निर्दोष
सम्यग्दर्शननी आराधना कर, अने तेनी आराधनावडे आ स्त्रीपर्यायनो छेद करीने
क्रमेक्रमे मोक्ष सुधीना परम स्थानोने प्राप्त कर. तमे बंने थोडाक उत्तम भावोने धारण
करीने ध्यानरूपी अग्निद्वारा समस्त कर्मोने भस्म करीने परम सिद्धपद पामशो.
–आ प्रमाणे प्रीतिंकरआचार्यना वचनोने प्रमाण करीने आर्यवज्रजंघे
पोतानी स्त्रीनी साथेसाथे प्रसन्नचित्त थईने सम्यग्दर्शन धारण कर्युं. ते वज्रजंघनो
जीव पोतानी प्रियानी साथे सम्यग्दर्शन पामीने अतिशय संतुष्ठ थयो; बराबर छे,–
अपूर्व वस्तुनो लाभ प्राणीओने महान संतोष उपजावे ज छे. जेम कोई राजकुमार
सूत्रमां परोवेली मनोहरमाळा प्राप्त करीने पोतानी राजलक्ष्मीना युवराज पद पर
स्थित थाय छे तेम ते वज्रजंघनो जीव पण जैन सिद्धांतरूपी सूत्रमां परोवेली मनोहर
सम्यग्दर्शनरूपी माळा पामीने मोक्षरूपी राजसम्पदाना युवराजपद पर स्थापित थयो,
तेमज विशुद्ध पुरुष पर्याय पामीने मोक्ष प्राप्त करवानी ईच्छा करती थकी सती आर्या
पण सम्यक्त्वनी प्राप्तिथी अत्यंत संतुष्ठ थई. पहेलां कदी पण जेनी प्राप्ति थई न हती
एवा सम्यग्दर्शनरूपी रसायणने आस्वादीने (चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदने
अनुभवीने) ते बंने दंपती कर्म नष्ट करनार एवा जैनधर्ममां अतिशय द्रढता पाम्या.
आ रीते ऋषभदेवनो आत्मा पूर्वे सातमा भवे भोगभूमिमां सम्यक्त्व
पाम्यो...भविष्यमां भरतक्षेत्रना आदि तीर्थंकर थईने जेओ धर्मतीर्थनी आदि
करनार छे एवा आदिनाथप्रभुना आत्मामां धर्मनी आदि थई. ते धर्मनी शरूआत
करनार धर्मात्माने अमारां नमस्कार हो.
वज्रजंघ अने श्रीमतीनी साथे साथे, पूर्वे कहेला सिंह, वांदरो, नोळियो अने भुंड
ए चार जीवो–के जेओ आहारदाननुं अनुमोदन करीने तेमनी साथे ज भोगभूमिमां