Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : १९ :
उपज्या हता तेओ पण, गुरुदेव प्रीतिंकरमुनिराजना चरणकमळनो आश्रय लईने
सम्यग्दर्शनरूपी अमृतने पाम्या. आनंदसूचक चिह्नो द्वारा जेमणे पोताना मनोरथनी
सिद्धि प्रगट करी छे एवा ते बंने दंपतीने ते ‘बंने मुनिवरो’ घणीवार सुधी
धर्मप्रेमथी वारंवार देखता हता,–कृपाद्रष्टि करता हता.
अने ते वज्रजंघनो जीव
पूर्वभवना प्रेमने लीधे आंखो फाडी फाडीने श्री प्रीतिंकरमुनिराजना चरणकमळ तरफ
देखी रह्यो हतो तथा तेमना क्षणभरना स्पर्शथी घणो ज प्रसन्न थई रह्यो हतो.
आ प्रमाणे ते बे मुनिभगवंतोए परम अनुग्रहपूर्वक वज्रजंघ वगेरे जीवोने
प्रतिबोधीने अपूर्व सम्यग्दर्शन पमाडयुं. त्यारबाद ते बंने चारणमुनिवरो पोताना
योग्यदेशमां जवा माटे तैयार थया, त्यारे वज्रजंघना जीवे तेमने प्रणाम कर्या अने परम
भक्तिपूर्वक केटलेक दूर सुधी तेमनी पाछळ पाछळ गमन कर्युं...जतां जतां बंने
मुनिवरोए तेने आशीर्वाद दईने हितोपदेश दीधो...अने कह्युं के हे आर्य! फरीने दर्शन
हो...तुं आ सम्यग्दर्शनरूपी सत्यधर्मने कदी भूलीश नहीं.–आटलुं कहीने ते बंने
गगनगामी मुनिवरो तरत ज आकाशमार्गे अंतर्हित थई गया.
ज्यारे बंने चारणमुनिवरो चाल्या गया त्यारे ते वज्रजंघनो जीव क्षणभर तो
बहुज उत्कंठित थई रह्यो.–साचुं ज छे के प्रियजनोनो वियोग मनने संताप करे छे.
वारंवार मुनिवरोना गुणोना चिंतनवडे पोताना मनने आर्द्र करीने ते वज्रजंघ घणा
वखत सुधी धर्मसंबंधी आ प्रमाणे विचार करवा लाग्यो: अहा! केवुं आश्चर्य छे के साधु
पुरुषोनो समागम हृदयना संतापने दूर करे छे, परम आनंदने वधारे छे अने मननी
वृत्तिने संतुष्ठ करे छे. वळी ते साधुओनो समागम प्राय दूरथी ज पापने नष्ट करे छे,
उत्कृष्ट योग्यताने पुष्ट करे छे अने कल्याणने खूबज वधारे छे. ते साधु पुरुषोए
मोक्षमार्गना साधनमां ज सदा पोतानी बुद्धि जोडी छे, लोकोने प्रसन्न करवानुं कंई
प्रयोजन तेमने रह्युं नथी. महापुरुषोनो आ स्वभाव ज छे के मात्र अनुग्रहबुद्धिथी
भव्यजीवोने मोक्षमार्गनो उपदेश आपे छे, (वज्रजंघनो जीव विचारी रह्यो छे:) अहा!
मारा धनभाग्य के मुनिभगवंतो मारा उपर अनुग्रह करीने अहीं पधार्या ने मने
सम्यक्त्व आप्युं. क््यां ए अत्यंत निस्पृह साधुओ! ने क््यां अमे? क््यां तो एमनुं
विदेहधाम! ने क््यां अमारी भोगभूमि! ए निस्पृह मुनिवरोनुं भोगभूमिमां आववुं
अने अहींना मनुष्योने उपदेश देवो ए कार्य सहज नथी तोपण ते मुनिवरोए अहीं
पधारीने मारा उपर महान उपकार कर्यो.