Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : अधिक श्रावण : २४९२
जेम आ चारणऋद्धिधारक मुनिवरोए दूरथी आवीने अमने धर्म पमाडीने
अमारा उपर महान उपकार कर्यो तेम महापुरुषो धर्म पमाडीने बीजानो उपकार
करवामां सदा प्रीति राखे छे. तपथी जेमनुं शरीर कृश थई गयुं छे एवा ए बंने
तेजस्वी मुनिभगवंतो अत्यारे पण मारी नजर सामे ज तरवरे छे, जाणे के हजी
पण तेओ मारी सामे ज ऊभा छे...हुं तेमना चरणकमळमां प्रणाम करुं छुं ने ते
बंने मुनिवरो तेमनो कोमळ हाथ मारा मस्तक उपर मुकीने मने स्नेहभीनो करी
रह्या छे! अहा! ए मुनिवरोए मने–धर्मना प्यासा मानवीने–सम्यग्दर्शनरूपी
अमृत पीवडाव्युं छे. तेथी मारुं मन संतापरहित अत्यंत प्रसन्न थई रह्युं छे...
आर्य वज्रजंघ ते प्रीतिंकर मुनिराजना महान उपकारनुं फरीफरीने चिंतन करे छे:
अहा, ए प्रीतिंकर नामना मोटा मुनिराज खरेखर ‘प्रीतिकर’ ज छे तेथी ज दूरदूरथी
अहीं आवीने अने मार्गनो उपदेश दईने तेमणे अमारा उपर अपार प्रीति दर्शावी छे.
तेओ, महाबलना भवमां पण मारा स्वयंबुद्ध नामना गुरु हता, अने आजे आ
भवमां पण मने सम्यग्दर्शन आपीने तेओ मारा विशेष गुरु थया छे. जो्र संसारमां
आवा गुरुओनी संगति न होय तो गुणोनी प्राप्ति पण न थई शके, अने
सम्यग्दर्शनादि गुणोनी प्राप्ति वगर जीवना जन्मनी सफळता पण न थाय. धन्य छे
जगतमां आवा गुरुओने के जेमनी संगतिथी भव्यजीवोने सम्यग्दर्शनादि गुणोनी
प्राप्ति थाय छे.
जेम जहाज वगर समुद्र तरी नथी शकातो तेम गुरुना उपदेश वगर
संसारसमुद्र तरी शकातो नथी. आ संसारमां भाई अने गुरु