Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : २१ :
ए बे पदार्थ मनुष्योने प्रीतिनुं कारण छे, परंतु तेमां भाई तो आ लोकमां ज प्रीति
उपजावे छे अने गुरु तो आ लोक तेमज परलोक बंनेमां प्रीति उपजावे छे. ज्यारे
गुरुना उपदेशथी ज अमने आ प्रकारनी सम्यग्दर्शनादिनी विशुद्धि प्राप्त थई छे
त्यारे अमारी भावना छे के जन्मांतरोमां पण गुरुदेवना चरणोमां अमारी भक्ति
बनी रहे.–
आ प्रमाणे गुरुना उपकार वगेरेनुं चिंतन करतां करतां वज्रजंघनी
सम्यक्त्वभावना अत्यंत द्रढ थई गई, आ ज भावना आगळ जतां तेने
कल्पलतासमान समस्त ईष्टफळ देनारी थशे. वज्रजंघनी माफक श्रीमतीना जीवे पण
उपर मुजब चिंतन कर्युं हतुं तेथी तेनी सम्यक्त्व–भावना पण सुद्रढ थई गई हती. ए
पति–पत्नी बंनेनो स्वभाव एकसरखो हतो; प्रीतिंकर मुनिराजना उपदेशथी सम्यक्त्व
पामीने ते बंनेए भोगभूमिनुं बाकीनुं आयुष्य सुखपूर्वक पूरुं कर्युं, अने आयुष्य पूर्ण
थतां प्राण छोडीने तेओ बंने ईशान स्वर्गमां उत्पन्न थया.
*
आ रीते ऋषभदेवना पूर्वना चार भव पूरा थया–
(१) महाबल राजानो भव (ज्यां मंत्रीना उपदेशथी जैनधर्मनो प्रेम जाग्यो.)
(२) ईशानस्वर्गमां ललितांगदेव (ज्यां स्वयंप्रभा देवी प्राप्त थई)
(३) वज्रजंघराजानो भव (जेमां श्रीमती साथे मुनिओने आहारदान दीधुं.)
(४) भोगभूमिनो भव (ज्यां मुनिवरोना उपदेशथी सम्यक्त्व प्राप्त कर्युं.
(प) हवे आवशे ईशान स्वर्गमां–श्रीधरदेवनो भव.
आत्मानी महत्ता
आ जगतमां आत्मा अने जड बधाय पदार्थो अनादिअनंत छे, अने
दरेक पदार्थमां क्षणे क्षणे पोतपोतानी अवस्थानुं रूपांतर थाय छे, ते तेना
स्वभावथी ज थाय छे. जडमां पण क्षणे क्षणे हालत पलटाय एवी तेना
स्वभावनी ताकात छे, जीवने लईने तेनुं कार्य थाय–एम बनतुं नथी. परंतु
अज्ञानी स्व–परनी भिन्नताने भूलीने परनां कार्य हुं करुं एवुं अभिमान करे छे.
पण भाई! एमां तारी महत्ता नथी, तुं तो ज्ञानस्वभाव छो.–ते स्वभावनी
महत्ताने लक्षमां तो ले. परनां कार्योथी तारी महत्ता नथी पण चैतन्यस्वरूपथी
तारी महत्ता छे. तारा चैतन्यस्वरूपनी महत्ताने लक्षमां लीधा वगर पोताने तुच्छ
मानीने तुं संसारमां रखडयो. हवे तारा चैतन्यनी प्रभुताने जाण ने परना
कर्तापणानुं अभिमान छोड तो तारा भवभ्रमणनो अंत आवे.