प्रवचनोनो सार.
पोतानी चेतना तेमां क््यांय नथी. पण अज्ञानीने आवा भिन्न आत्मानुं भान नथी, ते
तो भ्रान्तिथी देहादिने ज आत्मा माने छे. यथार्थ आत्मस्वरूपने नहि जाणनारो ते
बहिरात्मा आत्माने केवो माने छे ते हवे कहे छे–
स्थिति भ्रान्त्या प्रपद्यन्ते तमात्मानमबुद्धयः ।।६९।।
क्षणेक्षणे अनंत परमाणुओ जाय छे ने आवे छे; स्थूळपणे केटलोक काळ सुधी शरीर
एवुं ने एवुं देखाय त्यां अज्ञानी तेने स्थिर मानी रह्यो छे; अने देह साथे एकक्षेत्रे
रहेतां ते देहरूपे ज पोताने अनुभवी रह्यो छे. देह साथे एकक्षेत्रे रहेवुं ते कांई देह साथे
एकत्वबुद्धिनुं कारण नथी; ज्ञानीने अने केवळीने पण देह साथे एकक्षेत्रावगाहपणुं छे.
परंतु तेओ तो भेदज्ञानवडे पोताना आत्माने देहथी अत्यंत भिन्न अनुभवे छे.
अज्ञानीने पोतानी भिन्नतानुं भान नथी तेथी भ्रांतिथी ते देहने ज आत्मा तरीके माने
छे; देहनी क्रियाओने पोतानी ज क्रिया माने छे; तेने समजावे छे के भाई! तुं तो
चैतन्यबिंब, अरूपी वस्तु; देह तो रूपी अने जड; तेनी साथे एक जग्याए रह्यो तेथी
कांई तुं ते जडरूपे थई गयो नथी, तारुं स्वरूप तो एनाथी जुदुं ज छे. अनंता देह
बदल्या छतां तुं तो एकने एक ज रह्यो छे. पूर्वभवना ज्ञानवाळा कोई जीवो जोवामां
आवे छे, ते देहथी आत्मानी भिन्नताने प्रसिद्ध करे छे. पूर्वना देह वगेरे एकदम पलटी गया,