Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : प्र. श्रावण : २४९२
परम शांतिदातारी
अध्यात्मभावना
लेख नं. ३८] [अंक: ७३ थी चालु]
भगवानश्री पूज्यपादस्वामीरचित ‘समाधिशतक’
उपर पू. गुरुदेवना अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक
प्रवचनोनो सार.
ज्ञानी तो जगतथी भिन्न पोताना आत्मस्वरूपने एवुं जाणे छे के जगतना
पदार्थो तो तेने खाली भासे छे, जाणे ते चेतना वगरना होय एम भासे छे, केमके
पोतानी चेतना तेमां क््यांय नथी. पण अज्ञानीने आवा भिन्न आत्मानुं भान नथी, ते
तो भ्रान्तिथी देहादिने ज आत्मा माने छे. यथार्थ आत्मस्वरूपने नहि जाणनारो ते
बहिरात्मा आत्माने केवो माने छे ते हवे कहे छे–
प्रविशद्गलतां व्यूहे देहेऽणुनां समाकृतौ ।
स्थिति भ्रान्त्या प्रपद्यन्ते तमात्मानमबुद्धयः ।।६९।।
अज्ञानी पोतानी नित्यताने भूलीने भ्रान्तिथी आ क्षणिक संयोगी शरीरने
नित्य स्थिर मानी रह्यो छे, ने ते ज हुं छुं एम पोताने देहरूपे मानी रह्यो छे, शरीरमां
क्षणेक्षणे अनंत परमाणुओ जाय छे ने आवे छे; स्थूळपणे केटलोक काळ सुधी शरीर
एवुं ने एवुं देखाय त्यां अज्ञानी तेने स्थिर मानी रह्यो छे; अने देह साथे एकक्षेत्रे
रहेतां ते देहरूपे ज पोताने अनुभवी रह्यो छे. देह साथे एकक्षेत्रे रहेवुं ते कांई देह साथे
एकत्वबुद्धिनुं कारण नथी; ज्ञानीने अने केवळीने पण देह साथे एकक्षेत्रावगाहपणुं छे.
परंतु तेओ तो भेदज्ञानवडे पोताना आत्माने देहथी अत्यंत भिन्न अनुभवे छे.
अज्ञानीने पोतानी भिन्नतानुं भान नथी तेथी भ्रांतिथी ते देहने ज आत्मा तरीके माने
छे; देहनी क्रियाओने पोतानी ज क्रिया माने छे; तेने समजावे छे के भाई! तुं तो
चैतन्यबिंब, अरूपी वस्तु; देह तो रूपी अने जड; तेनी साथे एक जग्याए रह्यो तेथी
कांई तुं ते जडरूपे थई गयो नथी, तारुं स्वरूप तो एनाथी जुदुं ज छे. अनंता देह
बदल्या छतां तुं तो एकने एक ज रह्यो छे. पूर्वभवना ज्ञानवाळा कोई जीवो जोवामां
आवे छे, ते देहथी आत्मानी भिन्नताने प्रसिद्ध करे छे. पूर्वना देह वगेरे एकदम पलटी गया,