तारा करतां मारुं जोर वधारे छे; तारा जेवा अनंता जीवोने बांधी–बांधीने में संसारनी
जेलमां पूरी राख्या छे.–तुं व्यर्थ तारी शक्तिनी बडाई करे छे!! –पण हुं तने छोडवानो नथी.
शक्तिने रोकी शके–ए वात ज केवी? तुं तो खाली अमारा विभावनो पडछायो ज छो.
जेम पडछायो तो मूळ वस्तुने आधीन छे, पण कांई मूळ वस्तु पडछायाने आधीन
नथी, तेम ज पडछायो कोईने कांई करी शकतो नथी, तेम हे कर्म! तुं पडछायानी जेम
जीवना विकारने आधीन छो; जीव ज्यां निजस्वरूपमां समाशे त्यां छायानो नाश थई
जशे. संसारमां मूर्ख जीवो निजशक्तिने भूली परभवमां राची रह्या छे ने पोताना
अपराधने लीधे संसाररूपी जेलमां पडया छे,–ए तो एमनो पोतानो ज अपराध छे. जे
जीवो आराधक थईने संसाररूपी जेलमांथी छूटवा मांगे छे तेने रोकी शकवानी तारी
ताकात नथी. वळी हे कर्म! जो अमारा उपर तारी सत्ता चालती होय तो अमारा जाती
भाई एवा सिद्ध भगवंतोने तुं फरीने संसाररूपी जेलमां पूर! तो जीव उपर तारी
ताकात छे एम मानीए. बाकी तो जेओ स्वयं संसारजेलमां पूराया छे, तेने तुं एम कहे
के ‘में पूर्या’ ए तो गाडा नीचें चालता मूर्ख कूतरा जेवुं तारुं कथन छे. सिद्धभगवंतोए
तो तारो (आठे कर्मोनो) घात करी नांख्यो, छतां एने तुं केम नथी बांधी शकतो?
ऊंघता आत्मवीर पासे तुं तारी बडाई हांके छे पण ज्यां आत्मवीर जाग्यो त्यां तो तुं
ऊभी पूंछडीए दूर भागे छे. आ आत्मवीर सिद्धपद लेवा माटे हजी तो ज्यां
सम्यक्त्वनो टंकार करे छे त्यां ज तमे १४८ मांथी ४१ तो एवा भावो छे के क््यांय
देखाता नथी, ने बाकीनां पण बधाय ढीलाढफ थई जाव छो. माटे हे जडराज!