Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : २९ :
ले
खां

(१३)
[तत्त्वचर्चाना आ विभागमां आ वखते दश बाळकोना प्रश्नो ने तेना उत्तर आपवामां आवे छे...]
* सभ्य नं. ६६ पूछे छे के–शुद्ध स्वभाव कोने कहेवाय?
उत्तर:– तमारो प्रश्न टूंको होवा छतां घणो महत्त्वनो छे. ‘शुद्ध’ नो अर्थ
‘एकलो’ थाय छे. परसंग वगरनो ने परनी अपेक्षा वगरनो एकला आत्मानो
पोतानो जे सहज भाव तेने शुद्धस्वभाव कहेवाय. अथवा अंतरनी भूतार्थद्रष्टिवडे
स्वानुभूतिमां जे कांई अनुभवाय ते ‘शुद्ध’ , अने ते अनुभूतिमांथी जे बहार रही
जाय ते ‘शुद्ध’ नहि. ‘शुद्ध’ स्वभावमां अपूर्णता न होय, विकार न होय, परसंग न
होय. संग विनानो, विकार विनानो, पूर्ण एवो जे ज्ञानानंदे भरेलो भाव ते आत्मानो
शुद्धस्वभाव छे. ए शुद्ध स्वभावनो महिमा सर्वे सन्तोए गायो छे, हजारो शास्त्रोए
एनो अपार महिमा बताव्यो छे, अनंता जीवो एनी परम प्रीति करी करीने मोक्षमां
सिधाव्या छे; असंख्य जीवो एनी आराधना वडे मोक्षनो साधी रह्या छे पोतानो
शुद्धस्वभाव जेणे जाणी लीधो तेणे मोक्षने हथेळीमां लई लीधो. बाकी तो शुद्ध–
स्वभावना वर्णननो शब्दोथी पार न पडे, अनुभवथी ज एनो पार पमाय.
*
सभ्य नं. १२ अमदावादथी पूछे छे के–आपणे आत्माने केम जोई शकता नथी?
गुरुदेव तो कहे छे के आत्माने ओळखो–तो कई रीते ओळखवो!
तमारो प्रश्न सरस छे...गुरुदेव कहे छे के जेने आत्मानो खरेखरो रंग लागे तेने
आत्मा जरूर देखाय. समयसारमां पण कह्युं छे के जगतनो बीजो बधो व्यर्थ कोलाहल
छोडीने, एटले के बधेथी रुचि पाछी हटावीने आत्मामां ज रुचि जोडीने अंतरमां
आत्माने देखवा माटे छ महिना एकधारो प्रयत्न कर तो जरूर तारा अंतरमां ज तने
तारो आत्मा देखाशे एटले के अनुभवाशे ने तने महान आनंद थशे. आत्मा जेम बीजी
बधी वस्तुओने जाणे छे तेम ते पोते पोताने पण जरूर जाणी शके, –पण ते स्वानुभूति
वडे जणाय, बीजी रीते जणाय नहि. ते माटे तेनी खरेखरी ऊंडी धगश ने तमन्ना
जगाडीने ज्ञानीना सत्संगमां तेनो जोरदार प्रयत्न