Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: अधिक श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : १ :
वष २३
वार्षिक लवाजम अंक २७३ A
रू. ४ वर स. २४९२
अधक श्रवण
मुमुक्षुए स्वानुभववडे पोताना मोक्षमार्गने अंतरमां जोयो छे. जेम
मुक्त एवा सिद्धभगवंतो कदी विकारने पामता नथी, तो हुं पण तेमना जेवो
ज आत्मा छुं, माटे विकारने पामुं एवो मारो पण स्वभाव नथी.
सिद्धभगवंतोए विकारना कारणरूप एवा समस्त शुभ–अशुभ कृत्योनो नाश
कर्यो छे, समस्त शुभाशुभने छेदीने ते भगवंतो परम शुद्धदशाने पाम्या छे,–
माटे हुं पण हवे तेमनी जेम मारा परम स्वभावना अवलंबनवडे समस्त
शुभ–अशुभने छोडीने ए ज मुमुक्षुपंथे जाऊं छुं. आ ज एक मुमुक्षुओनो
मार्ग छे, बीजो मार्ग नथी. मोक्षने पामेला एवा सिद्धभगवंतोए जे कर्युं ते
ज मुमुक्षुनो मार्ग छे. मुमुक्षु ए पण सिद्धनो नातीलो छे, तेथी
सिद्धभगवंतोए जे कर्युं ते ज तेनुं कर्तव्य छे.
शुभाशुभथी पार जे एकलुं ज्ञान तेनो अनुभव करतां मोक्षमार्ग
थाय छे. हे जीव! तुं ज्ञाननो दरियो ने सुखथी भरियो, तेने ज्ञानवडे तुं जाण,
तो तने मोक्षमार्ग थशे ने आनंदनो अनुभव थशे.–आवो अनुभव करवो ते
ज मुमुक्षुनो मार्ग छे. सिद्धभगवंतो आ पंथे सिद्ध थया छे, ने मुमुक्षु कहे छे के
हुं पण ए ज मार्गे जाउं छुं. देहनी क्रियामां के रागमां क््यांय मुमुक्षुनो मार्ग
नथी, मुमुक्षुनो मार्ग स्वाधीन छे, ते मार्ग पोताना अंतरमां पुण्य–पापरहित
जे आत्मअनुभूति तेमां ज समाय छे. स्वानुभववडे ए मार्ग मुमुक्षुए
जोयेलो छे, ने ए जोयेला–जाणेला–अनुभवेला मार्गे ते मोक्षमां जाय छे.–
आवो मुमुक्षुनो मार्ग छे. ते परम आनंदमय छे. हुं पण हवे ते मार्गे जाउं छुं.