Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >

Download pdf file of magazine: http://samyakdarshan.org/DKxp
Tiny url for this page: http://samyakdarshan.org/Gkajlkb

PDF/HTML Page 5 of 58

background image
: २ : आत्मधर्म : अधिक श्रावण : २४९२
साधकना रणकार
सिद्धपदने साधवा नीकळेलो मुमुक्षु पोताना परमात्मस्वरूपनी
प्रतीतना रणकार करतो स्वसन्मुख थईने सिद्धपदने साधे छे–तेनुं
जोशदार वर्णन: (योगसार उपरना प्रवचनमांथी)
जिनवाणीना चारे अनुयोगना लाखो कथननो सार आ छे के हुं परमात्मा छुं–
एम पोताना स्वरूपने प्रतीतमां लईने तेनुं चिन्तन करवुं. जेवा परमात्मा तेवो ज हुं
एम परमात्मस्वरूपनी प्रतीतना पडकार करतो जे आत्मा जाग्यो तेने रागनी रुचि रहे
नहि; हवे क््यांय अटक्या वगर परमात्मा थये ज छूटको. आ रीते पोताना आत्माने
सर्वज्ञ समान पूर्णस्वरूपे अनुभवमां लेवो ते सर्व जिनसिद्धांतनो सार छे.
“जिन सोही है आतमा, अन्य होई सो कर्म;
येही वचनसे समज ले जिन–प्रवचनका मर्म”
पूर्णताने साधवा ऊपड्यो तेनी प्रतीतना पडकार छाना रहे नहीं. रणे चडेला
रजपूत कायरतानी वात करे नहि, तेम चैतन्यनी परमात्मदशाने साधवा माटे रणे
चडेलो मुमुक्षु रागनी रुचिमां रोकाय नहि; राग नहि, अल्पता नहि, हुं पूर्णानंदथी भरेलो
परमात्मा छुं–एम सत् स्वभावना रणकार करतो जाग्यो तेनी शूरवीरता छानी रहे नहि.
हुं परमात्मा छुं एम स्वसन्मुख थईने जे अनुभवे ते ज बीजा परमात्माने
साचा स्वरूपे ओळखी शके छे. पोतामां परमात्मपणुं देख्या वगर बीजा परमात्माना
स्वरूपनी साची ओळखाण थई शके नहि. माटे बीजी बधी विकल्पजाळ छोडीने हे जीव!
स्वमां उपयोग जोडीने ‘हुं ज सर्वगुणसंपन्न परमात्मा छुं’ एम आत्मानो अनुभव कर.
–ए ज सिद्धांतनो सार छे.
‘हुं रागी, हुं द्वेषी’ एवा स्वरूपे आत्माने चिंतवतां परमात्मपणुं नहि प्रगटे;
पण रागी हुं नहि, हुं तो परमात्मा छुं–एम आत्माने परमात्मस्वरूपे चिंतवतां
परमात्मपणुं प्रगटे छे. हे जीव! आ लोकोत्तर वीतरागमार्गने साधतां तुं लोकेषणामां
अटकीश नहि, लोक शुं कहेशे–तेनी सामे जोईने रोकाईश नहि. शास्त्रोना विकल्पोमां
अटकीश नहि ने मोटा पंडितो शुं माने छे तेनी चर्चामां रोकाईश नहि. ए बधी
विकल्पजाळने तोडीने तारा परम