Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : प्र. श्रावण : २४९२
मोक्षमार्गना दरवाजा खोलवानी रीत
आत्मदर्शन ए ज एक मोक्षनुं कारण छे
(एनाथी भिन्न बीजुं कोई मोक्षनुं कारण नथी)
धर्मीने शुद्धात्मा नजीक छे, तेमांथी मोक्षमार्ग आवे छे, ने
रागादि तो स्वभावथी दूर छे, तेमांथी कांई मोक्षमार्ग नथी आवतो.
पोताना शुद्ध आत्मानी परम किंमत भासे तो तेमां उपादेयबुद्धि थाय,
तेनी सन्मुख परिणति थाय ने मोक्षमार्ग खूले. पण ते माटे पहेलां
ज्ञानीना सत्समागमे तेनी तीव्र जिज्ञासा जागवी जोईए. एने
रागनो रस ऊडी जाय ने शुद्धात्मानो रस घणो वधी जाय. पछी
अंतर्मुख परिणाममां शुद्धात्माने साक्षात् उपादेय करतां परम
आनंदसहित मोक्षमार्ग खूली जाय छे.–आ मोक्षमार्गना दरवाजा
खोलवानी रीत सन्तोए मने बतावी.
[योगसार गाथा १६–१८ उपरनां सुंदर प्रवचनमांथी]
अप्पा–दंसणु एक्कु परु अण्णु ण किं पि वियाणि ।
मोक्खहं कारण जोइया णिच्छा एहउ जाणि ।।१६।।
जुओ, अहीं मोक्षनुं कारण बतावे छे. मोक्षनुं निश्चय कारण एक आत्मदर्शन ज
छे, बीजुं कांई मोक्षनुं कारण नथी एम हे जीव! तुं जाण.
आत्मदर्शन एक श्रेष्ठ छे, अन्य न किंचित् मान;
हे योगी! शिवहेतु ए निश्चयथी तुं जाण. (१६)
मोक्षना दरवाजा केम खूले? के पोतानो महा किंमती जे आत्मस्वभाव, तेनुं