: प्र. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : प :
सम्यक्पणे दर्शन–श्रद्धान–अनुभवन ते ज मोक्षनुं कारण छे; ते ज श्रेष्ठ छे; ए
सिवाय बीजुं कांई श्रेष्ठ नथी के बीजुं कांई मोक्षनुं कारण नथी.–आम तुं निश्चयथी
चोक्कस जाण.
ज्यां मननी पहोंच नथी, वचननी ज्यां गति नथी ने कायानी ज्यां चेष्टा नथी,
विकल्पनो ज्यां प्रवेश नथी–एवुं जे आत्मदर्शन एटले के शुद्धात्मानी प्रतीत ते
निश्चयथी मोक्षनुं कारण छे. आत्मदर्शन कहेतां अभेद आत्माना अनुभवरूप
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणे तेमां समाई जाय छे; ते ज श्रेष्ठ छे ने ते ज मोक्षमार्ग
छे. आ सिवाय बीजुं कांई श्रेष्ठ न जाण, बीजो कोई मोक्षमार्ग न मान.
देह–मन–वाणीनी क्रियानो जेमां प्रवेश नथी, मनना विकल्पोथी जे गम्य नथी
एवुं जे शुद्धआत्मतत्त्व, तेनुं दर्शन–तेनुं ज्ञान–तेनी अनुभूति ए ज एक श्रेष्ठ–उत्तम
मोक्षकारण छे. वच्चे बीजा विकल्पो होय पण ते मोक्षनुं कारण नथी, ते श्रेष्ठ नथी.
रत्नत्रयनी आराधनाथी मोक्षमार्गमां वर्तता वीतरागी सन्त जगतने कहे छे के
हे जीवो! जगतमां शुद्धात्मानुं दर्शन ते ज एक श्रेष्ठ छे, ने तेना वडे ज मोक्षमार्ग सधाय
छे; एना वगर कदी मोक्षमार्ग साधी शकातो नथी. आत्मदर्शनथी अन्य एवा कोई पण
भेद–भंग–व्यवहारना पराश्रित भावने मोक्षमार्ग मानवो नहि. स्वाश्रित भावरूप
आत्मदर्शन (जेमां दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणे समाय छे) –तेने ज खरेखर मोक्षमार्ग
जाणवो. –बीजाने मोक्षमार्ग जरा पण न मानवो.
अरे, गुण–गुणीना भेदना विचार वडे पण जेनी प्राप्ति नथी एवुं आत्मदर्शन,
अंतर्मुख अनुभववडे थाय छे, ने मोक्षमार्ग ते अनुभवमां समाई जाय छे. पोताना
सहज–आनंदस्वभावनी सन्मुख थईने ज्यां निर्विकल्प अनुभव सहित सम्यग्दर्शन थयुं
त्यां मोक्षमार्गना दरवाजा खुल्या. अतीन्द्रिय आनंदसहित आवुं आत्मदर्शन जेने थयुं
तेने जगत प्रत्ये सहज वैराग्य परिणाम होय छे. परथी पराङ्मुख ने स्वभावनी
सन्मुख एवा जे निर्मळ परिणाम ते ज एक मोक्षनुं कारण छे.
सीमंधर भगवान वगेरे सर्वे तीर्थंकर भगवंतो आवा मोक्षमार्गने साधीने
सर्वज्ञ परमात्मा थया छे; अनंत सिद्धभगवंतोए आवा मोक्षमार्गने साधीने सिद्धपद
प्राप्त कर्युं छे; गणधरादि सन्तो आवा ज मोक्षमार्गने साधी रह्या छे. ने ते तीर्थंकरोए
तथा गणधरादि सन्तोए आवो ज एक मोक्षमार्ग बताव्यो छे, आ सिवाय बीजुं कांई
पण मोक्षनुं सत्य कारण जराय नथी.
व्यवहारना रागमां मोक्षमार्ग जराक तो हशे ने?–तो कहे छे के ना; ‘अन्य न
किंचित् मान’ –आ जे स्वाश्रित आत्मदर्शनमय वीतरागभावरूप मोक्षमार्ग, तेनाथी