Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
पर्युषण पर्व दसलक्षण धर्म
आत्माना धर्मनी परि–उपासना, सर्व प्रकारे उपासना करवी, एटले के
रत्नत्रयधर्मनी उत्कृष्ट आराधना करवी, एनुं नाम पर्युषण–पर्व, आराधना निजात्माना
ज आश्रये छे, एटले कोई अमुक काळे के अमुक दिवसे ज आराधना थाय ने पछी न
थाय एवुं नथी. ज्यारे अने ज्यां जे जीव स्वद्रव्यनो जेटलो आश्रय करे छे त्यारे अने
त्यां ते जीवने तेटली धर्मनी उपासना थाय छे. हवे आपणा शासनमां जे विशिष्ट
पर्वना दिवसो छे ते आवा रत्नत्रयधर्मनी उपासना माटे विशेष जागृति–विशेष प्रेरणा
ने विशेष भावना थाय, तथा विशेष प्रकारे धर्मप्रभावना थाय, ते हेतुथी छे. आपणा
पवित्र पर्वोनी पाछळ रहेलो धर्मनी आराधनानो आ उद्देश आपणे भूलवो न जोईए,
अने जीवनमां सदाय धर्मनी आराधना केम थाय–तेमां पुष्टि ने वृद्धि केम थाय–ते माटे
सतत जागृत ने उद्यमशील रहेवुं जोईए. जे जीवो धर्मनी आराधनारूपे परिणम्या छे
तेमना आत्मामां तो सदाय धर्मनुं पर्व छे, एने सदाय पर्युषण छे. एवा धर्मात्माना
दर्शन ने सत्संग जिज्ञासुने धर्मआराधनानी मंगल प्रेरणा आपी रह्या छे.
पर्युषणपर्वना दिवसो भादरवा मासमां नजीक आवी रह्या छे,–त्यार पहेलां ज
आत्माने आराधनावडे तैयार करीने एवो पर्युषणामय करी दईए के, भादरवो मास
वीती जाय तोपण आत्मामां ‘पर्युषणा’ चालु ज रहे, आत्मामां धर्मनी उपासना सदाय
वर्त्या ज करे.
पाठको अने बाळको! पर्युषण दरमियान अने त्यार पहेलां अत्यारथी ज ‘रात्रि
भोजन त्याग’नो निर्णय करो. रात्रिभोजन ए मोटो दोष छे. तेनो त्याग करो.