चैतन्यरसनुं घोलन करे छे....ने ज्यारे प्रवचनमां मधुरी
हलकपूर्वक तेनुं विवेचन करे छे त्यारे चैतन्यना
अमृतरसमां तरबोळ बनीने श्रोताजनो डोली ऊठे छे,
अहीं तेनी थोडीक झलक आपी छे.
निर्मळता एक साथे प्रगटे छे. चेतनमय आत्मानी अनुभूतिमां सर्वे गुणोनी अनुभूति
आवी जाय छे. एक पर्यायमां बधा गुणोनो स्वाद भेगो छे. एकेक गुणनी गणतरीथी
आत्माना अनंतगुणने पकडवा मांगे तो अनंतकाळेय ते पकडाय नहि; अनंतगुणथी
अभेद आत्मामां उपयोग मुकतां अनंतगुणो स्फूट–प्रगट अनुभवाय छे. भाई, आवा
आत्माना अनुभवनी होंश ने उत्साह कर. विकल्पनी रागनी के बहारनी होंश करतां
तारा अनंतगुणना पिंडनो अनादर थाय छे. अरे, अनंत गुण तारामां भर्या छे, जेनु
ग्रहण विकल्प वडे थई न शके. माटे निश्चल थईने,