बाह्यमांथी उपयोगने समेटीने अंतरमां उपयोगने लगाव! अंतरमां उपयोग जोडता ज
ध्यानमां स्फूटपणे स्पष्टपणे प्रगटपणे अनंत गुणोनी निर्मळतानो अनुभव थाय छे, मोक्षमार्ग
तेमां समाई जाय छे. अहा, अनंतगुणनो अनुभव तेना अतीन्द्रिय आनंदनी शी वात!
विकल्पना प्रवेशनो अवकाश नथी, एवी अनुभूति सम्यग्द्रष्टिने थाय छे.
सिद्धभगवंतोने जेटला पवित्र गुणो प्रगट्या छे ते बधाय गुणो तारा आत्मामां विद्यमान
छे. तेनो परम प्रेम करीने प्रगट अनुभव कर. तेना अनुभवथी आत्मामां आनंदना अमृत
वरसशे. वाह! आत्माना अनंतगुण बतावीने संतोए पंचमकाळमां अमृत वरसाव्या छे.
प्रगट अनुभव आतमा, निर्मळ करो सप्रेम रे......चेतन्यप्रभु......
अमृत वरस्या रे पंचमकाळमां......
छे. आ रीते अंतरस्वरूपनी अनुभूतिमां सर्वे गुणो प्रगट थाय छे. अहा, अनुभूतिमां
शुं बाकी रहे छे! आखो आत्मा पोतानी समस्त संपदासहित अनुभूतिमां समाई जाय
ज्ञानीनी खरी ओळखाण थाय छे.
सर्वज्ञनी खरी स्तुति जाणतो नथी. समस्त आराधना शुद्ध चैतन्यनी अनुभूतिमां ज समाय
तो कहे छे के तुं तारी सामे जो केमके जेवा गुणो अमारामां छे एवा अनंतगुणो तारामां छे.
आम अंतर्मुख स्वभावमां नमवुं ते ज साची गुरुवंदना ने ते ज साची गुरुभक्ति छे.
प्रगटाव के बीजा बधानो उल्लास छूटी जाय.