ने परिणतिनुं लक्ष अंतरगुणोमां घुसी जाय. आवा आत्मानी अनुभूति करतां तारी
परिणतिमां अनंतगुणनी अमृतधारा वरसशे. हाकल करीने एकलो अंतरना मार्गे
हाल्यो जा.
एटले त्यां गमशे. जगतमां जीवने गमे एवुं स्थान होय तो आत्मा ज छे जगतमां
आत्मा सिवाय बीजे क््यांय गमे तेवुं नथी–“ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण” तेमां तुं जा
एम संतो हाकल करे छे. ए हाकल सूणीने बीजुं कोई साथे न आवे तो तुं
एकलोएकलो ते मार्गे चाल्यो जा. एकलो थईने अंतरमां आत्माना आनंदने अनुभव.
आत्मा आत्माद्वारा ज अनुभवमां आवे छे, माटे सर्वसंगरहित थईने एकलो–एकलो
स्वभावनुं ज घोलन कर.....तेमां ज परिणतिने वारंवार जोड....तने शीघ्र मुक्तिनी सिद्धि
गुणनुं सेवन एक साथे थाय छे केमके ‘ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण.’ अनंत गुणनो
अद्भुत चैतन्यरस स्वानुभवमां समाय छे.
पूर्वे एक क्षण पण न जाणी. खरेखर, त्रणलोकमां
प्रभुत्वगुणशक्तिथी अरेरे, हुं संसारमां मार्यो गयो छुं.
परंतु हवे मारा आत्मानी प्रभुत्वशक्तिनी संभाळ वडे