Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ११ :
ने परिणतिनुं लक्ष अंतरगुणोमां घुसी जाय. आवा आत्मानी अनुभूति करतां तारी
परिणतिमां अनंतगुणनी अमृतधारा वरसशे. हाकल करीने एकलो अंतरना मार्गे
हाल्यो जा.
जगतमां क््यांय न गमे तो अंतरमां जा! एकवार बेनोए कह्युं हतुं के क्यांय न
गमे तो आत्मामां गमाड! क्यांय न गमे तो आत्मामां जा.......त्यां आनंद भर्यो छे
एटले त्यां गमशे. जगतमां जीवने गमे एवुं स्थान होय तो आत्मा ज छे जगतमां
आत्मा सिवाय बीजे क््यांय गमे तेवुं नथी–“ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण” तेमां तुं जा
एम संतो हाकल करे छे. ए हाकल सूणीने बीजुं कोई साथे न आवे तो तुं
एकलोएकलो ते मार्गे चाल्यो जा. एकलो थईने अंतरमां आत्माना आनंदने अनुभव.
अरे, अनुभवमां ज्यां ईन्द्रियो अने मननोय साथ नथी, त्यां बीजानी शी
वात! एकलो थईने (विकल्प वगरनो थईने) एकत्वस्वरूप आत्माने अनुभवमां ले.
आत्मा आत्माद्वारा ज अनुभवमां आवे छे, माटे सर्वसंगरहित थईने एकलो–एकलो
स्वभावनुं ज घोलन कर.....तेमां ज परिणतिने वारंवार जोड....तने शीघ्र मुक्तिनी सिद्धि
थशे....प्रगट आनंदनो अनुभव थशे.
श्रावकने कहे छे के हे श्रावक! तारा उपयोगने आत्मस्वरूपमां जोडीने
शुद्धरत्नत्रयने भज! ए ज रत्नत्रयनी परम भक्ति छे. शुद्ध आत्माने भजतां अनंत
गुणनुं सेवन एक साथे थाय छे केमके ‘ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण.’ अनंत गुणनो
अद्भुत चैतन्यरस स्वानुभवमां समाय छे.
अहो, मारा हृदयमां स्फूरायमान आ
निजआत्मगुणसंपदा के जे समाधिनो विषय छे तेने में
पूर्वे एक क्षण पण न जाणी. खरेखर, त्रणलोकमां
वैभवना प्रलयना हेतुभूत दुष्कर्मोनी
प्रभुत्वगुणशक्तिथी अरेरे, हुं संसारमां मार्यो गयो छुं.
परंतु हवे मारा आत्मानी प्रभुत्वशक्तिनी संभाळ वडे
हुं कर्मोनी शक्तिने हणीने मारा सिद्धपदने साधीश.